मिलकर सोचें | THINKING TOGETHER

THINKING TOGETHER by अरविन्द गुप्ता - Arvind Guptaअहिल्या - AHILYA

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पुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बातचीत की कला 1 . 7 बातचीत करना एक महान कला है और यह आवश्यक है कि हम इसे समझें। मेरी मित्र कल्याणी के पास अपने चारों ओर की वस्तुओं जैसे फूलों और पक्षियों, नगरों और गाँवों, वातावरण और प्रदूषण, योग तथा जड़ी बूटियों, साहित्य तथा धर्म, रंगमंच तथा संगीत और कई बातों के बारे में ज्ञान का भंडार है। वह जीवन की हर वस्तु में रुचि लेती है। उसमें जीवन तथा चेतना है। उसके साथ बातचीत करना वास्तव में एक शिक्षा है, क्योंकि वर्षों में अपने अनुभवों से उसने जो कुछ भी जाना है, सीखा है, वे अनुभव तथा ज्ञान की बातें, वह बड़े उत्साह से बताती है और लोगों से बातें करने में उसे आनंद मिलता है| फिर मेरा दूसरा मित्र डेनियल है जो विज्ञान तथा इतिहास जैसे विषयों के बारे में बहुत नहीं जानता परंतु उसने कई जगहों की यात्रा की है और कई बार पर्वतारोहण भी कर चुका है। उसके अनुभवों की कहानियाँ बड़ी रोमांचक होती हैं और उन्हें सुनने में बड़ा मज़ा आता है। उसकी बातें उत्साहपूर्ण होती हैं और वह कई लोगों के समान बातचीत पर केवल अपना ही अधिकार नहीं जमाता। बातचीत के दौरान वह दूसरों के अनुभव संबंधी छोटे-छोटे प्रश्न पूछकर उन्हें भी इस बातचीत का एक अंग बना देता है। इस कारण उसकी बातें सुनते कोई नहीं थकता क्योंकि दोनों ही उसमें भाग लेते हैं। द बेगम खातून का स्वभाव अलग है। शर्मीले स्वभाव की वह स्त्री बहुत मृदु स्वर में धीरे से बोलती है। उसकी सीधी-सादी बातों से दिल पर बहुत प्रभाव पड़ता है। वह तुमसे तुम्हारी कुशलता, तुम्हारी प्रिय वस्तुओं के विषय में पूछेगी और ऐसी छोटी-छोटी चीजों के बारे में बात करेगी जिनमें आपको मज़ा आएगा। यह बात कितनी सच है कि हमें उन लोगों से बातें करना बहुत अच्छा लगता है जो मृदुभाषी होते हैं और जो अपनी बात दूसरों पर नहीं थोपते | दूसरे प्रकार के लोग मोहन चाचा और उनके मित्रों जैसे होते हैं। वे हमेशा अखबारों तथा पत्रिकाओं में आई खबरों के बारे में जोर शोर से बातें करते हैं, किसी की निन्‍दा करते हैं, किसी के पक्ष में अथवा किसी के विपक्ष में बोलते हैं। उनके सरकार को लेकर, व्यापार बातचीत की कला तथा उद्योग, कपड़ें और हाथ करघा, अमरीका तथा रूस को लेकर तरह-तरह के विचार हैं। वें इन विषयों पर बोलते ही चले जाते हैं। कोई उनकी बातों पर ध्यान नहीं देता। कभी-कभी इसकी शुरुआत तो ठीक से होती है परंतु शीघ्र ही वह एक गरमागरम बहस का रूप धारण _ कर लेती है। इस कारण कई बार इसका शोर रेडियो में आ रहे उस्त शोर के समान होता है . जब उसकी सुई ठीक स्थान पर नहीं होती। यदि प्रत्येक अपने ही विचारों को बताना चाहे तो वहाँ विचारों का आदान-प्रदान नहीं हो सकता। इस कारण अनिता चाची अपने घर में इस प्रकार के शोरगुल व विवादों से इतनी तंग हैं कि वे इसकी अनसुनी कर देती हैं और कोने में बैठकर अपनी बुनाई में व्यस्त रहती हैं। उन्हें यह संब कुछ अपने बचपन के दिनों से बहुत अलग लगता है जब हर व्यक्ति बड़े ही धीरे बोलता था और अतिथि अपने साथ प्रसन्नता लाते थे। क्या तुमने एक और बात पर गौर किया है ? अक्सर लोग अपने से ऊपर के लोगों से . बड़ा आदरपूर्ण व्यवहार करते हैं किंतु अपने से निम्न वर्ग जैसे नौकरों के साथ बड़ा ही कठोर तथा रूखा व्यवहार करते हैं| अब हम देखें कि स्कूलों में बच्चे किस प्रकार बोलते हैं। जब आधी छुट्टी में तुम साथ : होते हो तो किस विषय पर बातें करते हो। शायद अपनी छुट्टियों के बारे में, अपनी खरीदी वस्तु के बारे में, तुम क्या करना चाहते हो इस बारे में और साथ ही शिक्षकों के बारे में, पर इतना तो तुम मानोगे कि जब तुम बातें करते हो तो तुम में से कई एक साथ बोलते हैं। कोई किसी की नहीं सुनता। कोई धीमे स्वर में नहीं बोलता | कई बार छात्र चिल्लाते हैं । वार्तालाप की कला बिलकुल भिन्‍न है। यह अपनी आवाज़ को ऊँची कर पंचम स्वर में बोलना नहीं है। यह बहुत ही अच्छी बात है कि सब में इतनी शक्ति है और इतना बाँटने की क्षमता है परंतु यह बड़े दुःख की बात है कि इसमें से कई दूसरों की बातों को सुनना नहीं जानते, है ना? क्‍ एक बात पर और ध्यान दो | स्कूल में हम अपनी ही एक भाषा बना लेते हैं | कभी-कभी यह अपभाषा होती है और कभी-कभी एकदम काम चलाऊ | क्या तुमने अपनी भाषा पर ध्यान दिया है और देखा है कि तुम लोगों के साथ बोलने में कितने मधुर और नम्न हो ? क्या तुम सरलता तथा सहजता से वार्तालाप कर सकते हो ? क्या तुम शर्मीले और अल्पभाषी हो ? अगर ऐसा है तो क्‍या तुमने इसके कारण पर कभी अपने आपमसे प्रश्न किया है ? क्‍या तुममें सुनने का धैर्य है ? क्या तुम्हारा दिमाग एक खुली




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