एक निराली रस्सा - कशी | NIRALI RASSA-KASHI

Book Image : एक निराली रस्सा - कशी  - NIRALI RASSA-KASHI

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

अज्ञात - Unknown

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक समूह - Pustak Samuh

No Information available about पुस्तक समूह - Pustak Samuh

Add Infomation AboutPustak Samuh

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
“नमस्कार हाथी,” यहाँ भी खरगोश ने बड़ी विनमता से बात की. हाथी ने खरगोश को देखा, अपनी संड उठाई और अकड़ कर बोला, “किस से बात कर रहे हो? मझ से? तम तो इतने छोटे हो कि दिखाई भी नहीं पड़ते. तमने मझ से बात करने का साहस कैसे किया?” “अगर रस्सा-कशी के मुकाबले में में आपको हरा दूं तो क्या आप मझे अपने समान ताकतवर मान लेंगे?” खरगोश बोला “हो...हो...हो...क्या बात है? ऐसा चटकला तो मैं आज पहली बार सुन रहा हु ” हाथी ने जोर से हसते हए कहा, “तम मझे हराओगे? रस्सा-कशी में? में तमसे छह हज़ार गना बड़ा हू और अरब ग॒ना अधिक ताकतवर ह्‌. “शायद मेरी ताकत आपको दिखाई नहीं दे रही,” खरगोश बोला वो अपनी हंसी रोक न पा रहा था. “क्या आप मेरे साथ मकाबला करेंगे? उसकी बात सन हाथी ने बड़े अभिमान के साथ कहा, “हाँ में मकाबला करूंगा. ऐसा सरल मकाबला तो मैंने आज तक नहीं किया.” “मेरे पास यह लंबा, मज़बत रस्सा है. इसे आप पकड़ लें. में दरिया की ओर जाऊँगा. वहां पहुँच कर मैं रस्से को एक झटका दूँगा आप समझ लेना कि मैं तैयार हूँ. आप रस्सा खींचना. मुकाबला शुरू हो जाएगा. अगर आप खींच कर मझे जंगल के बीच यहां ले आये हे आप की जीत होगी. लेकिन अगर मैंने आपको दरिया तक खींच लिया तो मेरी जीत होगी. तब आपको स्वीकार करना पड़ेगा कि में भी आपके समान शक्तिशाली हूँ ” खरगोश ने कहा.




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now