गजरत - बरसत | GARJAT BARSAT

GARJAT BARSAT by अरविन्द गुप्ता - Arvind Guptaअसगर वजाहत - ASGAR WAJAHAT

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असग़र वजाहत - Asagar Wajahat

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पुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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80/17/2016 उठती है, जब भूख लगती है। मैं कुछ चिंता करने लगा। तुम्हें देख के डर न जाएगी , वह हंसी। सुसराल में तुम्हारा झगड़ा है , मैंने सुना था कि ससुराल वाले उससे खुश नहीं हैं। झगड़ा कुछ नहीं है. . .एक दीया से पूरे घर मैं उजाला कैसे हो सकता है , वह बोली। क्या मतलब? हमारा छोटा देवर हम को चाहत रहे. . . हम कहा चलो ठीक है. . .छोटे भाई हो हमरे आदमी के . . .छोटे को देखा- देखी जेठ जी भी ललचा गये. . . समझे बहती गंगा जी है. . -. हम मना कर दिया . . .घर का पूरा कामकाज जेठजी करते हैं. . खेती बाड़ी. . . जेठ की शादी नहीं हुई है? उनकी औरत कौनों के साथ भाग गयी। तो जेठ जी तुम्हारे साथ. . . हां, पर हमका अच्छे नहीं लगते। क्यों? वह कुछ नहीं बोलती। चिन्हारी देवर, वह मेरा हाथ पकड़कर बोली। मैं चुप रहा। चिन्हारी नहीं जानते। जानते हैं मतलब पहचान. . . मान लेव रात हो. . .हमारे पास आओ. . .तो चिन्हारी देखके समझे न कि तुम हो? आहो, ये बात है ख़ासी भोली-भाली ख्वाहिश है। मासूम इच्छा। पता नहीं कितने समय से यहां प्रेमियों में इसका रिवाज होगा। पहले अपने चिन्हारी दोर, मैं बोला। खोज लेव , वह आहिस्ता से बोली और उठकर दीया बुझा दिया। 1640




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