बूँद और समुद्र | BOOND AUR SAMUDRA
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
380
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
अमृतलाल नागर - Amritlal Nagar
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पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)छ -सात वर्ष पहले महिपाल शुक्ल के कारण ही उनका सज्जन से परिचय हुआ था। यह
परिचय अब गाढ़ी मेत्री बन गया है। सज्जन, कर्नल और महिपाल अभिन्न माने जाते है ।
लेखक महिपाल इन दोनो से अपेक्षाकृत बहुत गरीब है, पर बडा मेहनती, खरा और दोस्ती
निभानेवाला जीव है । ५
सज्जन के कमरे में पैर रखते ही कर्नल ने पूछा--- तुम्हे महाकवि बोर तो नही
मिले थे ?”
“नही | क्या आये थे यहाँ ?”
“हाँ। मेने उन्हे पट्टी पडाकर रवाना कर दिया।”
“साले यहाँ भी बोरियत फंलाने चले आते है ।”
महिपाल बोला---इन कम्बख्त मुहल्लेवालो ने तुम्हारे खिलाफ अखबारो में
शिकायत छपवाकर और तो जो कुछ बुरा किया सो किया, इस सीक्रेट अड्डे का पता
जगजाहिर कर दिया, यह बहुत ही थुरा किया । बडी मुश्किलो से गए हें कविजी यहां
से
सिगरेट सुलगाकर अपने को दुशाले से अच्छी तरह लपेटकर बेठते हुए सज्जन
खामोशी में डूब गया । करने उसकी तरफ गौर से देखकर बोला---क्यो आज फिर
कोई नई बात हो गई है ? ”
“नही, कोई खास नही । द्वारकादासजी आये हए हे यहाँ।”
“द्रकादासजी ? राजाबहादुर ””
“हैं। अपनी पटरानी के महलो में हे इस वक्त । यार ये औरत तो गजब की कंरेक्टर
है । जादू के पुतले बनाती है ।”
सज्जन ने थोडी देर पहले घटी हुई आपबीती सुनाई । कर्नेल परेशान हो गयें---
“तुमने बह पुतला छूकर अच्छा नही किया ।”
“मुझे क्या मालूम था बे! में समझा ताई के अकेलेपन का मनोरजन है । तुम
यकीन मानों महिपाल, में बडा ही खुश हुआ, मगर” सज्जन हंसने लगा । हाथ
बढाकर ऐशट्रे में राख झाडकर बोला--- मेने अपनी श्ञान में ट्रेंडिशनल इडियन स्टाइल
की ऐसी ठेठ गालियाँ सुनी हे कि क्या बतलाऊँ |”
छत पर किसी की छायाकृति झलकी । सज्जन का ध्यान उधर गया । राजाबहादुर
सर द्वारकादास अग्रवाल दरवाजे पर खडे थे ।
सज्जन अदब से उठ खडा हुआ । कर्नेल साहब के चेहरे पर नम्अता की किरणे फूट
पड़ी, आदर से हाथ जोडे । महिपाल बसे ही बैठा रहा ।
राजाबहादुर का ध्यात किसी की ओर भी न गया, हाथ के इशारे से सज्जन को
बुलाते हुए उन्होने कहा-- यहाँ आना बेटा ! ”
सज्जन फौरन उठकर बाहर आया । उसके कधे पर हाथ रखकर जीने की तरफ
बढ़ते हुए द्वारकादास बोले--- आज की बातो का किसी से जिक्र न करना ।”
“जो, कतई नही । आप विश्वास रक््खे ।*
“उनका दिमाग जरा पलटा हुआ है।”
१२/बूँढ और समर
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