संत कबीर | SANT KABIR
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
385
श्रेणी :
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पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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हजारी प्रसाद द्विवेदी - Hazari Prasad Dwivedi
हजारीप्रसाद द्विवेदी (19 अगस्त 1907 - 19 मई 1979) हिन्दी निबन्धकार, आलोचक और उपन्यासकार थे। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म श्रावण शुक्ल एकादशी संवत् 1964 तदनुसार 19 अगस्त 1907 ई० को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के 'आरत दुबे का छपरा', ओझवलिया नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री अनमोल द्विवेदी और माता का नाम श्रीमती ज्योतिष्मती था। इनका परिवार ज्योतिष विद्या के लिए प्रसिद्ध था। इनके पिता पं॰ अनमोल द्विवेदी संस्कृत के प्रकांड पंडित थे। द्विवेदी जी के बचपन का नाम वैद्यनाथ द्विवेदी था।
द्विवेदी जी की प्रारंभिक शिक्षा गाँव के स्कूल में ही हुई। उन्होंने 1920 में वसरियापुर के मिडिल स्कूल स
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कुविम्द एफ शित्पी या कछाकार है और उसका काय बच्ध शुनना छे। क्षत्रिय
पिता और अद्रा माताके सयोगसे म्लेच्ठकी उत्पत्ति हुईं। यह उत्पत्ति जिरा रामय
हुईं इब समय माता ऋतुदोपसे अपवित्न थी और पिताऊे सनमें पाप-भावना थी ।
इसीलिये इस संयोगसे वलतान्, दुरन््त और पाफ-पारायण स्हेच्छ जातियोंका
प्रादुर्भाय हुआ। वे जातियों क्रूर, निर्भय, दुषपु और विधर्मी हुई' । हंस प्रकार
हिन्दू पुराणोके मतसे जुलाद्दा जातिका प्राहुर्भाय मुसलमान पिता ओर क्षमिन्द्
माताओं आकरिमिक संयोगसे हुआ | इस देशमे इस प्रकारके आकरिमक सायोगसे
नई जातिका पदा हो जाना अपरिचित घटना नहीं है। आज जो सहसोकी
सख्याम जातियों वर्तमान हैं, वस्तुतः उनम कई इसी प्रकार बन गई हैं, परन्तु
जुलाहोंके सबबमें पुराणोंकी यह व्यवस्था कई कारणोंसे मानने योग्य नहीं
आदूप होती ।
हिन्दू पुराणों और धर्मग्रथोंकी यह प्रवृत्ति रही है. कि किसी जातिकी उत्पत्तिके
लिये निम्नलिखित पॉच कारणमिंसे किसी एकको मान छेवा हु
(१ ) बणणके अनुलोम विवाहसे,
(१ ) बर्णाके प्रतिकोम विवाहसे,
( हे ) वर्णाकी सरकार-अश्ताके कारण,
(४ ) वर्णाे बहिष्कृत समुदायसे और,
(५) भिन्न सफर-जातियोंके अन्तर्विवाहसे ।
इन पॉच कारणेके अतिरिक्त कोई छठा कारण हिन्दू पुराणो और श्मृतियौंगे
नही बताया गया । जब फ़िस्ली नई जातिका आविर्भाव भारतीय भूमिपर हुआ
है तभी कोई न योई ऐसा ही परिश्षण सोच लिया गया है। यह धारणा फ्ैपल
शाज्रीय विवेचनाओंतक ही सीमित नहीं रही है, सावारण जनतामें गी बद्धमूछ
हो गई है । ”
इस प्रकारकी कतपनाएँ जातिकी साम|जिक मर्यादाओंका नियमन भी करती हैं ।
स्मृतियों और पुराणकी कथाअपिरते यह अन्दाजा भी लगाया जा सकता है कि
- खुब्नत्रीयण शूद्रायासूतुदोपेण पापत । कण
बलवत्यों दुरन्ताश्र बभूबुर्म्भच्छजातय ।
जविद्धकर्णा कंराश्व निर्भया रणदुजया ।
ओचावचारपिहीनाश्व दु्षों धर्मवर्मिता ॥
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