मोहनदास की अंक तालिका | MARKSHEET OF MAHATMA GANDHI

MARKSHEET OF MAHATMA GANDHI by अरविन्द गुप्ता - Arvind Guptaरामचन्द्र गुहा - RAMCHANDRA GUHA

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रामचन्द्र गुहा - RAMCHANDRA GUHA

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मार्च-अप्रैल 2009 लेकिन अभी तो इस कथन की जांच होना बाकी थी। 1887 में मैट्रिक की परीक्षा देने मोहनदास रेल से पहली बार अहमदाबाद गए। इस परीक्षा के कुछ आंकड़े इस प्रकार हैं: परीक्षा देने वाले कुल छात्र: 3097 | सफल छात्र: 799 | मोहनदास का स्थानः 404 | बालक गांधी को प्राप्त अंकः अंग्रेजी: 89/200। गुजरातीः 45.5/100। गणितः 59/175 । सामान्य ज्ञान: 54/150 । इस तरह कुल 69 में से 247.5 नंबर मिले थे। प्रतिशन का हिसाब आप लगा लें: 40 प्रतिशत है यह | यानी एक बार फिर मोहनदास औसत छात्रों में शामिल हो गए थे। महात्मा गांधी एज ए स्टूडें”' किताब को लेखक बिरादरी और गुजराती समाज काफी इज्जत देता है। इसमें अंक तालिकाओं के अलावा बहुत कुछ है। इससे पता चलता है कि परीक्षाओं में बेहद सामान्य प्रदर्शन के बावजूद उनके मिडिल स्कूल के शिक्षक ने उनके व्यवहार को “बहुत अच्छा” पाया जबकि अच्छे नंबर लाने वाले छात्रों के व्यवहार को केवल “अच्छे! की श्रेणी में रखा गया था। लेखक ने किताब में गांधीजी की मैट्रिक की अंग्रेजी परीक्षा का पर्चा भी दिया है। इसमें 45 नंबर के प्रश्न में 'खुशमिजाजी के फायदे” विषय पर एक लेख लिखना था। कया यह संभव नहीं कि इसके जवाब ने गांधीजी को एक ऐसा राजनीतिज्ञ बनने को प्रेरित किया हो, जिसने किसी भी परिस्थिति में कभी भी आपा नहीं खोया? जीवन भर। द लेखक ने उन सब बातों को भी इस किताब में जगह दी है, जिनकी वजह से गांधीजी में सभी धर्मों के प्रति सम्मान की भावना पैदा हुई होगी। हाईस्कूल के दिनों में गांधीजी का सबसे अच्छा दोस्त एक मुसलमान लड़का था, उनके हेडमास्टर पारसी थे। वे जिस स्कूल में पढ़ते थे, उसकी इमारत जूनागढ़ के नवाब द्वारा दान में दिए गए 68 हजार रुपए से बनी थी। अपनी स्कूली पढ़ाई के आखिरी दिनों में गांधीजी को ज्यादा नंबर मिलने लगे थे। इस कारण उनको छात्रवृत्ति भी दी जाने लगी थी। कितनी? उन्हें हर महीने 10 रुपए मिलते थे। यह छात्रवृत्ति काठियावाड़ के दो बड़े लोगों के नाम पर शुरू की गई थी। इनमें एक हिन्दू थे तो दूसरे मुसलमान। इस तरह गांधीजी को स्कूल में ही इतने धर्म के लोगों का साथ मिल गया था। लेखक श्री रामचंद्र गुह्टा इतिहासकार हैं और पर्यावरण और राष्ट्रीय आंदोलन पर लिखी इनकी पुस्तकें खूब पसंद की गई हैं। इस वर्ष भारत सरकार ने इन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया है।




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