आफंती के किस्से | AAFANTI KE KISSE - SOVIET CHILDREN'S BOOK

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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20 आफन्ती के किस्से पेट से ज्यादा अच्छा है, तो उस पर हरगिज यकीन न करो!” “वाह! कितनी बढ़िया बात है, सेठ जी!” आफन्ती बोला। “अब दूसरा नीति वचन सुनाइए।” “अगर कोई कहे कि पैदल चलना घोड़े की सवारी से ज्यादा आरामदेह है, तो उस पर हरगिज यकीन न करो! ” “बिल्कुल सही फरमाया आपने, सेठ जी! इससे बढ़िया नीति वचन और क्या हो सकता है?” आफन्ती बोला। “अब तीसरा नीति वचन भी सुना दीजिए। ” “अगर कोई कहे कि दुनिया में तुमसे बड़ा बेबकूफ कुली मिल सकता है, तो उस पर हरगिज यकीन न करो।” सेठ का तीसरा नीति वचन सुनते ही आफन्ती ने अपने हाथ का सन्दूक यकायक छोड दिया और वह धम्म की आवाज के साथ जमीन पर गिर पड़ा। सन्दूक की ओर इशारा करते हुए आफक्ती ने सेठ से कहा: “अगर कोई कहे कि इस सन्दूक में रखे चीनी मिट्टी के बर्तन टूटे नहीं हैं, तो उस पर हरगिज यकीन न करो।” आदेश का पालन जब आफकन्ती छोटा था, तो बह गांव के एक सेठ का आंगन बुहारा करता था। सेठ उसे साल के अन्त में तनख्वाह देता था और अक्सर तनख्याह न देने का बहाना ढूंढता रहता था। एक बार जब साल का अन्तिम दिन आ गया तो सेठ ने सुबह-सवेरे ही आफन्ती आफन्ती के किस्से शव को बुला भेजा और बोला: “नसरूद्दीन, आज तुम आंगन बुहारते समय एक भी बूंद पानी नहीं छिड़कोगे। पर बुहारने के बाद आंगन गीला-सा लगना चाहिए। अगर तुम ऐसा न कर पाए, तो तुम्हारी इस साल की पूरी तनख्वाह कट जाएगी और अगले साल तुम्हें मेरे यहां काम नहीं मिलेगा!” यंह कहकर सेठ नए साल के लिए कुछ जरूरी चीजें खरीदने शहर चला गया। आफन्ती ने चुपचाप सेठ का आंगन बुहार डाला और फिर गोदाम से तेल की सभी तुम्बियां बाहर निकालकर सारा तेल आंगन में छिड़क दिया। जब यह काम पूरा हो गया, तो वह जीने पर बैठकर तनख्वाह के लिए सेठ की बाट जोहने लगा।




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