पंचतंत्र की श्रेष्ठ कहानियाँ | PANCHTANTRA KI SHRESTHA KAHANIYAN

PANCHTANTRA KI SHRESTHA KAHANIYAN by अरविन्द गुप्ता - Arvind Guptaराजकुमारी श्रीवास्तव - Rajkumari Srivastav

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राजकुमारी श्रीवास्तव - Rajkumari Srivastav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मगर की मूर्खता (मूर्ख को धोखे में डालना सरल होता है) एक नदी किनारे वृक्ष पर एक बंदर रहता था। बंदर अकेला था। बह वह वृक्ष के मीठे-मीठे फलों को खाता और आनंदमय जीवन बिताया करता था। मन में कोई चिंता तो रहती नहीं थी, इसलिए बडा स्वस्थ रहता था। एक दिन भोजन की खोज में एक मगर नदी के किनारे पहुंचा। बंदर ने मगर को देखकर उससे पूछा, “तुम कौन हो भाई? कहां रहते हो?! मगर ने उत्तर दिया, “मैं मगर हूं। मेरा घर नदी के उस पार है।'! बंदर फल खा रहा था। उसने मगर से पूछा, “क्या तुम भी खाओगे? '' बंदर ने चार-पांच फल नीचे गिरा दिए। मगर ने उन फलों को खाकर कहा, ““वाह-वाह, यह तो बड़े भीठे हैं।'' बंदर ने कहा, “और खाओगे?”' मगर ने उत्तर दिया, “दोगे, तो क्‍यों नहीं खाऊंगा? ”' बंदर ने कुछ और फल नीचे गिरा दिए। मगर ने उन फलों को खाकर कहा, “क्या तुम प्रतिदिन इसी तरह के फल खाते हो?'' बंदर बोला, “हां भाई, फल ही मेरा भोजन है। मैं रोज ऐसे फलों को ही खाता हूं।'' मगर बोला, “यदि मैं कल आऊं, तो क्‍या तुम कल भी 3 ----->.-..--. (+%(१७(5७ मगर की मूर्खता / 15 “१८7




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