बहादुर आयरीन | BAHADUR IRENE

BAHADUR IRENE  by अरविन्द गुप्ता - Arvind Guptaविलियम - William

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वो फिर से सस्‍नो पर चलने लगी. क्‍या माँ उसकी बात को समझ पाएंगी? उसने अचरज किया. क्या माँ समझेंगी कि वो आयरीन की नहीं, उस बेहूदा हवा की गलती थी? क्या रानी बहुत नाराज़ होंगी? हवा अभी भी किसी ज़ख्मी जानवर की आवाज़ जैसे कराह रही थी. तभी आयरीन का पैर एक गड्ढे में फिसला और उसकी एड़ी मुड़ गई. आयरीन ने उसे भी हवा की हरकत माना. “चुप बैठो!” उसने हवा को फटकारते हुए कहा. “तुमने पहले ही मेरा बहुत नुक्सान किया है. तुमने सब कुछ बरबाद कर डाला है, सब कुछ!” पर मदमस्त हवा आयरीन के शब्दों को निगल गई.




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