बन्दर बांट | BANDAR BANT

BANDAR BANT by अरविन्द गुप्ता - Arvind Guptaहरिवंश राय बच्चन - Harivansh Rai Bachchan

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हरिवंश राय बच्चन - Harivansh Rai Bachchan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तोड़-तोड़कर तुम्हें बराबर दे दी जाए। मेरे पास धरम-काँटा है। (बन्दर मेज के नीचे से तराज़ू निकालकर लाता है । गेटी को दो हिस्सों में तोड़कर दोनों पलड़ों पर रखता है और तराज़ू उठाता है। एक पल्रड़ा नीचे रहता है; दूसरा ऊपर) बन्दर : यह टुकड़ा कुछ भारी निकला। इसमें से थोड़ा खा करके हल्का कर दूँ। (खाता है) (फिर तराज़ू उठाता है। अब पहला पलड़ा ऊपर हु ४ है की रा, सफेद बिल्ली : श्रीमन पहले मैंने ही रोटी देखी थी, बन्दर : कक कल हे मेरा बनता है। हो जाता है, दूसरा नीचे) काली बिल्ली : श्रीमन पहले में १ अप तुमको क्या कहना है? बन्दर : अब यह टुकड़ा भारी निकला। इससे रोटी पर जम ० शक ह अब इसको थोड़ा खा करके हल्का कर दूँ। बन्दर : (सफ़ेद बिल्ली से) > बनता। (फिर तराजू उठाता है। अब पहला पलड़ा नीचे अजब तो जो वी हो जाता है; दूसरा ऊपर आओ वर हो स। कर * डे भी कितने खोटे है... ' 2182 छे/ एक टॉग से झपटी थी या एक दूसरे को छोटा दिखलाने में ही काली बिल्ली : दो - लगे हुए हैं। कब सा 8 हे, दोनों थॉंगों से। मुँह थक गया बराबर करते। के दोनों बिल्लियाँ : कहीं की 667 और तराजू उठा-उठाकर हाथ थक गया। की सिर (बिल्लियों को बन्दर की चालाकी का पता चल बन्दर : बात गे कोई । गया और वे हाथ मलती हुई बड़ी उदासी से ' 7 बराइर। जात बराबर। शा ) है मेरा फैसला कि रोटी सफेद बिल्ली : आप थक गए, 30 31




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