ईश्वरचन्द्र विद्यासागर | ISHWARCHAND VIDYASAGAR
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
66
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक समूह - Pustak Samuh
No Information available about पुस्तक समूह - Pustak Samuh
शिवप्रसाद पाण्डेय - SHIV PRASAD PANDEY
No Information available about शिवप्रसाद पाण्डेय - SHIV PRASAD PANDEY
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १४ )
सब जगह बिजय पाते थे। उन्हों ने कभी किसी की
टेढी ऑग्व नहीं देखी ।
इेशइवर चन्द्र जी सच मुच ही दुनियां के
बिरलेही पुरुषों में से एक थे । परिवार के कष्ट को
सहते हुये अपनी पेट की ज्वाला का सामना करते
हुये दुनिया में कौन ऐसा पुरुष है जिसने अपनी
प्रतिभा का परिचय वेंसे ही दिया हे जेसा विद्या
सागर जी ने दिया | पिता गरीब थे । आप को भी
पेट भर अन्न नहीं मिलता था तिस पर भी विद्यालय
से जो वजीफा मिलता था उसका एक अधिक
हिस्सा अन्य गरीब सहपाठियों की सहायता में
ये खचे करते थे । आप अपने घर के कते हुमे खत
के कपड़े पहनते थे परन्तु अन्य गरीब बालकों को
अपने से अच्छा वन्त्र व्वरीद देते थे । लड़कों का तो
कहना ही क्या हे बड़े बड़ों में मी यह त्याग देग्वने
में कम आता है। विद्यासागर दूसरों के लिये
सदा अपने कष्टों को भूल जाते थे ।
एक ओर पेटमर भोजन न मिलने और
ओर काफ़ी निद्रा न मिलने का कष्ट था दूसरी
ओर घर पर अपने तथा अपने पिता के लिये
रोटी बनाना इस पर भी अन्य गरीब बालकों
User Reviews
No Reviews | Add Yours...