वांग्मय, अप्रैल 2013 | VAANGMAY, MAGAZINE - 2013

VAANGMAY, MAGAZINE - 2013 by अरविन्द गुप्ता - Arvind Gupta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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एटमी छाया में इंसानियत बरबार“फूट रहा है युगों-युगों की कोढ़ का मवार्दा लेखक कहता है कि जो अमेरिका की रोशनी से रोशनीवान है वह अब सायों में भटक रहा है और दूसरों के बरबाद करने की साजिश रचने वाले देश स्वयं ही खूनी साम्राज्यवाद की फांसी पर लटक रहा है। अब वह उसका साथ चाहते हुए भी नहीं छोड़ सकता और वह जिन्दगी और मौत के बीच अपने को लटके हुए महसूस कर रहा हैं। रोटी, कपड़ा, मकान मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताएं हैं और वह इन सब की प्राप्ति के लिए उसे कठिन से कठिन परिश्रम करना पड़ता है जब वह नैतिक से सफल नहीं होता तो अनैतिक मार्ग चलने के लिए बाध्य हो जाता है। भूख एक मौलिक आवश्यकता है जिसके समक्ष फौलादी बाँधाएं अथवा अड़चने भी उसके इरादों के आगे झुक जाती हैं और मनुष्य अपने कठोर परिश्रम से सफलता की मंजिल पा लेता है। इसी संबंध में कवि अपने विचारों को व्यक्त करता है-मौत से भयानक फौलादी सलाखें»जिसमें फंसी हुई है/मुरदा किसी चिड़िया की रंगीन पंखें/पत्थरों का रक्त पीते हुए/किसी पिशाच के स्याह-स्याह हुए/और भूख जर्जर /किसी गरीब विधवा की जलती हुई आंत कवि के अन्दर जीने की एक ललक है वह कर्म प्रधान इस देश में जीना चाहता है और कुछ कार्यों को सम्पन्न करना चाहता है। अतः वह इस जीवन की क्षण भंगुरता युक्त संसार में जीवित रहने की इच्छा के प्रति अपना मत व्यक्त करते है। वह कहते हैं ग्लानियुक्त जीवन तथा असहाय समझकर दया किये जाने की ग्लानि की पीड़ा से मैं जल रहा हूँ। जो लोग बिना किसी अपराध के मासूम बकरियों की तरह काट दिये जाते हैं उनके अपराध बोध से मैं दबा जा रहा हूँ। एक तरफ कवि वैवाहिक जीवन के दौरान किसी अन्य महिला या प्रेमिका से संबंध को जहाँ एक तरफ नैतिक बुराई मानते है वहीं दूसरी तरफ वह इसे पारिवारिक कष्ट का कारण भी मानते हैं। कवि का विचार है कि जब अपनी गृहस्थी बसा चुके हो तो तुम्हें अपनी प्रेमिकाओं एवं पड़ोसिनों से किसी भी प्रकार का संबंध नहीं बनाना चाहिए। यदि ऐसा किया तो घर की शांति भंग हो सकती है परिवार में तिरस्कार का सामना करना पड़ सकता है। वहीं समाज की दृष्टि में अपमानित भी होना पड़ सकता है। वैवाहिक जीवन में दाम्पत्य संबंधों के प्रति अपने दायित्वों को समझते हुए कहते हैं-अपनी प्रेमिका के साथ फिल्म शो/मत जाओः कठिन होगा सह लेना“फैला हुआ निर्जन एकांत, जब पर्दे की तस्‍वीरों के प्रतिबिम्ब तैरते हो/चारों ओर। उधार मत दो पड़ोसी“घर की नई मालकिन को अपनी»क्रॉकरीः उसका दिल टूट जायेगा,»या तुम्हारे घर की शांति, और टूटने के बाद/चीजें वापस नहीं की जाती है।' गरीबों की चीख और कराह के प्रति संवेदना- कवि का विचार है कि सत्ता और समाज के सत्ताधारी, कानून के रखवाले अपने उत्तरदायित्व से बचने के लिए घटित घटनाओं को दबाने का प्रयास करते हैं। कवि की कुछ पंक्तियां गरीबों की चीख और कराह से संबंधित हैं-शायद यह आखिरी चीख है, जो/इस सुरंग से निकली है। आखिरी/जमीन के नीचे मकान और सड़कें/बनाने वाले मजदूर मर चुके हैं।* नगर बंधुओं के प्रति संवेदना - समाज में मानव अपनी जठराग्नि शान्त करने तथा परिवार की जरूरत की पूर्ति हेतु स्वयं को प्रतिदिन नीलाम करने वाली नगर बंधुओं के प्रति अपनी संवेदना का अभिव्यक्त करते हुए कवि कहते हैं-सड़कें खाली हैं। वे करती हैं इंतज़ार......“सड़कें गलियां, बरामदे भर गये हैं, फिर भी,/वे करती रहती हैं इंतज़ार । वेश्याओं के प्रति संवेदना - कवि की कविताओं में एक अर्थहीन विषाद के दर्शन होते हैं जिनका सार्वजनिक जीवन में कोई अर्थ नहीं है। इसी से संबंधित रचनाकार अपने विचार व्यक्त करते हुए 16 वाड्मय अप्रैल 2013




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