बदलाव की राजनीति और संघर्ष -निर्माण का दर्शन | BADLAV KI RAJNEETI AUR SANGHARSH-NIRMAN KA DARSHAN

BADLAV KI RAJNEETI AUR SANGHARSH-NIRMAN KA DARSHAN by अनिल सदगोपाल - ANIL SADGOPALअरविन्द गुप्ता - Arvind Gupta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका 2 मार्च 1977 का दिन। तत्कालीन मध्य प्रदेश (वर्तमान छत्तीसगढ़) के जिला दुर्ग के दल्‍ली राजहरा में स्थित सार्वजनिक क्षेत्र के भिलाई स्टील प्लांट (बी. एस.पी.) की बंधक लोहा पत्थर खदानों के 10,000 ठेका मजदूरों ने स्थापित ट्रेड यूनियनों के खिलाफ विद्रोह कर दिया। स्थानीय नेतृत्व ने नजदीक की दानीटोला क्वार्टजाइट खदान में काम कर रहे मजदूर शंकर गुहा नियोगी को आंदोलन की मदद के लिए दल्ली राजहरा बुलाकर छत्तीसगढ़ माईनस श्रमिक संघ (सी.एम.एस.एस.) का गठन कर लिया। तीन माह बाद बी.एस.पी. प्रबंधन, खदान ठेकेदार और प्रशासन के दबाव में पुलिस ने मजदूरों पर दो बार गोली चलाई जिसमें एक महिला मजदूर, व एक बच्चे सहित 11 मजदूर मारे गए। अगले 44 सालों के दौरान न केवल देश वरन्‌ पूरी दुनिया एक ऐतिहासिक मजदूर आंदोलन की गवाह बनी | नियोगी के नेतृत्व में लगभग 20,000 मजदूर छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा (छमुमो) के लाल-हरे झंडे के तहत संगठित हुए। मजदूरों ने दिहाड़ी की लड़ाई को इज्जत की लड़ाई में बदलना सीखा और अर्थवाद से परे हटकर सामाजिक व राजनीतिक बदलाव की लड़ाई लड़ी। एक के बाद एक निराले कदम उठाए गए - शराब बंदी आंदोलन, शहीद अस्पताल व शहीद स्कूलों का निर्माण, सांस्कृतिक समूह व महिला मोर्च का गठन, 1857 में शहीद हुए वीर नारायण सिंह को मजदूरों के प्रेरणा स्रोत के रूप में स्थापित करना, मशीनीकरण रोकने के लिए अर्द्ध-गशीनीकरण की लड़ाई, पर्यावरण की लड़ाई, देशभर के जनांदोलनों को सक्रिय समर्थन देना और अंततः छत्तीसगढ़ के विकास के लिए विश्व बैंक के मॉडल के खिलाफ जनवादी व देशप्रेमी वैकल्पिक मॉडल खड़ा करना। 1990 में इस आंदोलन से भिलाई क्षेत्र के करीब एक लाख मजदूर जुड़ गए। इसीलिए जरूरी हो गया था कि नियोगी की हत्या करवाई जाए जिसको भिलाई क्षेत्र के पूंजीपतियों ने 28 सितंबर 1991 को अंजाम दे दिया। नियोगी की भारत के नवनिर्माण की बहुआयामी दृष्टि ने बुनियाद डाली “संघर्ष और निर्माण' के दर्शन की जो दर्शन होने के साथ-साथ बदलाव की राजनीति का क्रांतिकारी शिक्षाशास्त्र भी है। इसी की एक तस्वीर आपके सामने . पूर्वपप्रकाशित 'संघर्ष और निर्माण” नामक पुस्तक (सितंबर 1993) से उद्धरित चार आलेखों के जरिए पेश की जा रही है। संभवतः इनमें से कोई भी आलेख पूरी बात नहीं कहता लेकिन उन्हें जोड़ने पर पूरी तस्वीर जरूर बन जाती है। [] शहीद नियोगी पुस्तकालय एवं सांस्कृतिक केंद्र 4 बदलाव की राजनीति, संघर्ष-निर्माण का दर्शन वामपंथ की तीनों धाराओं से अलग, एक चौथी धारा - ए. के. राय' शंकर गुहा नियोगी जब जीवित थे तब वे नेता रहे, लेकिन मृत्यु के बाद एक धारा बन गए। उस धारा का नाम है संघर्ष से निर्माण.| यह एक अनोखा संगम, जो एक निर्बल समाज का संबल। दिल्‍ली भारत की राजधानी, लेकिन दलल्‍ली राजहरा आज राजनीति का नया तीर्थ है। मध्य प्रदेश के बीच लोहा खदानों से लाल एक इलाका, भारत के भूगोल ने जिसका कभी ख्याल नहीं किया। आज कितने लोग वहां पहुंच रहे हैं! इसके लिए काफी कीमत देनी पड़ी है। पंद्रह साल पहले ग्यारह श्रमिकों के बलिदान से जिस यात्रा की शुरूआत हुई, वह आज राजनांदगांव होते हुए पंद्रह श्रमिकों की शहादत के साथ भिलाई पहुंची है। लेकिन दिल्ली अभी दूर है। दल्ली से दिल्‍ली, इस धारा के प्रवाह में 27 सितंबर 1991 की रात में शंकर गुहा नियोगी भी मिला दिए गए। इसलिए इस धारा का संदेश आज सभी को आकर्षित कर रहा है। यह कोई बीते हुए जीवन का व्याख्यान नहीं, एक आनेवाले जमाने का जयगान है। नींद तोड़ने का आह्वान, जो सोए हुए जमात को जगाता है, और उन तमाम लोगों की नींद छीन लेता है, जिन्होंने सोए हुए एक जीवन को हमेशा के लिए नींद में ढकेल दिया था। मृत शंकर गुहा नियोगी, जीवित शंकर गुहा नियोगी से ज्यादा बलवान है। आज दल्ली इसलिए आनेवाले जमाने का दिल्‍ली है । सन्‌ 1971 से 1991 तक, बीस साल की दुरूह यात्रा। इस बीच कितनी घटनाएं। कितनी उठापटक दुनिया में। भारत में भी। इतिहास के उलटे रथ ने कितने स्वप्नों को तोड़ डाला। कितनी आशाओं का अंत किया। समाजवादी विश्व तथा सोवियत संघ के विघटन के बाद जैसे तमाम मूल्य ही उलट गए। उपयोगितावाद (प्रैगमैटिज़्म) के युग में आदर्शहीन विश्व ही आदर्श विश्व| आज स्वतंत्रता एक बोझ। निर्भरता अच्छी। 'मार्क्सिस्ट को-ऑर्डिनेशन कमेटी (धनबाद) के नेता एवं कोयला मजदूरों के जुझारू संगठक, प्रखर राजनीतिक विचारक व लेखक; धनबाद के पूर्व निर्दलीय सांसद | शहीद नियोगी पुस्तकालय एवं सांस्कृतिक केंद्र 5 बदलाव की राजनीति, संघर्ष-निर्माण का दर्शन




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