बारह कहानियाँ | BARAH KAHANIYAN

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सत्यजीत राय -SATYJIT RAY

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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20 : यारह बहानियों नहीं कहा जा सकता। बल्कि अनेक सूड़घारी कोई आऊचघर्यजनक जातव ही उसे माना जा सकता है। गौर से दशने पर एक तना दीस पढ़ता है। बह तना पांच-एछह हाथ ऊंचा उठकर एक मस्तक में जाकर समाज हे गया है। मस्तक से करीब एक हाथ नोचे, मस्तक को गोसाकार झूपई घेरकर फई सूंड़ हैं। गिनकर देखने पर सात सूंड मालूम होते हैं...“ पेड का तना धूसर वर्ण और घिफना है तथा पूरे तने में भूरे बितते छगे हैं। नि जाप जमे के सूंड अभी मिट्टी की ओर भुककर पढ़े हैं। देखने में निर्मीय जैसे लए हैं। लेकिन फिर भी मेरा शरीर शिहर उठा। आं्ें जब अंधेरे की अभ्यस्त हो गयी तय एफ और वस्तु पर गड़र पड़ी। कमरे के फर्श पर पेड के घारो तरफ चिड़िया की पांफं विधरी हुई हैं। ने जाने, मैं कय तक चुपचाप खड़ा रहा। कांति बावू वी आाशव सुनकर मेरी चेत्तना वापस लोटी हि “अभी पेड़ सो रहा है। सगता है, जगने कय समय हो गया है | अभिजित ने भविश्यास के स्वर में कहा, “व्या यह वारतव में कोई पेड है ?” काति ने कहा, “जड़ मिट्टी से लगी हुई है तो पेड़ के अलावा इसे वश कहिएगा ? इतना जरूर है कि उसका हाव-भाव पेड-पौधो की तरह रई है । शब्दकोश में उसका कोई उपयुक्त नाम नहीं है।” “आप इसे बया कहते हैं ? ” “सेंटोपस। या हिन्दी में इसे सप्तपाश कह सकते हैं। 'पाश” गाती बधन। जिस तरह नागपाश ।” हम लोग मकान की ओर चल दिये। मैंने पूछा, “यह पेड आपको कहा मिल्ला 2 “मध्य अमेरिका की तिकारागुआ झील के पास ही पना जगल है। उसी में यह पेड मिला है।” “आपको काफी खोज-पडताल करनी पडी होगी 1 ं “उसी अचल में मिलता है, यह बात मुझे मालूम थी । तुम लोगों ने प्रोफेसर डॉयस्टन का नाम सुना है? वे उद्भिद वैज्ञानिक थे, साथ-ही-साप यायावर भी। मध्य अमेरिका में पेड-पौधो की तलाश मे जाकर जान गवा बैठे थे। उनकी मृत्यु किस तरह हुई यह बात किसी को मालूम नहीं। मे गे शव लापता ही गया था । उनकी तत्कालीन डायरी के अन्तिम भोग मे इस बेड का उल्लेख है।” “यही वजह है कि मौका मिलते हो मैं पहले निकारायुआ की ओर




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