आनंद की लहरें | ANAND KI LEHREN

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हनुमान प्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar

He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ड सबको एक-सा समझो। किसीको अपनेसे छोटा समझकर उससे घृणा न करों, न अपनेमें बड़प्पनका अभिमान ही आने दो ।' “बड़ा वही है, जो अपनेको सबसे छोटा मानता है। यह मन्त्र सदा स्मरण रखो ।' “ईश्वर सदा-सर्वदा तुम्हारे साथ है, इस बातको कभी न भूलो । ईश्वरको साथ जाननेका भाव तुम्हें निर्भय और निष्पाप बनानेमें बड़ा मददगार होगा | यह कल्पना नहीं है, सचमुच ही ईश्वर सदा सबके साथ है ।' 'ईश्वरके अस्तित्वपर विश्वास बढ़ाओ, जिस दिन ईश्वरकी सत्ताका पूर्ण निश्चय हो जायगा, उस दिन तुम पापरहित और ईश्वरके सम्मुख हुए बिना नहीं रह सकोगे।' | “अपनेको सदा बलवान, नीरोग, शक्तिसम्पन्न और पवित्र बनाओ, ऐसा बनानेके लिये यह निश्चय करना होगा कि मैं वास्तवमें ऐसा ही हूँ। असलमें बात भी यही है। तुम शरीर नहीं, आत्मा हो। आत्मा सदा ही बलवान, नीरोग, शक्तिसम्पन्न और पवित्र है; देहको 'मैं' माननेसे ही निर्बलता, बीमारी, अशक्ति और अपवित्रता आती है ।' देहको “मैं” मानकर कभी अपनेको बलवान, नीरोग, शक्ति-सम्पन्न और पवित्र मत समझो, यों समझोगे तो झूठा अभिमान बढ़ेगा; क्योंकि देहमें ये गुण हैं ही नहीं ।' “देहाभिमान ही पाप है और यही सबसे बड़ी अपवित्रता है। या तो अपनेको ईश्वरका पवित्र अभिन्न अंश आत्मा मानो या उस प्राणेश्वर प्रभुका दास मानो, आत्मा तो पवित्र और बलवान्‌ है ही, प्रभुका दास भी स्वामीकी सत्तासे, मालिकके बलसे मालिकके समान ही पवित्र और बलवान्‌ बन जाता है ।' 'ईश्वरकी कभी सीमा न बाँधो, वह अनिर्वचनीय है, साकार भी है, निराकार भी है तथा दोनोंसे बिलक्षण भी है। भक्त उसे जिस भावसे भजता है, वह उसी भावमें प्रत्यक्ष है; यही तो ईश्वरत्व है ।'




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