चींटा और अन्तरिक्ष यात्री | CHEENTA AUR ANTRIKSH YATRI

CHEENTA AUR ANTRIKSH YATRI by अरविन्द गुप्ता - Arvind Guptaए० मित्ययेव - A. MITYAYEV

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला किस्सा एक समय की बात है जब धरती पर सारी चीजें गिरती-पड़ती रहती थीं। नीचे की चीजें गिर जाती थीं और, कितनी अजीब-सी बात है कि, ऊपर की चीजें ऊपर गिरती थीं। वे तो बस चिडियों की तरह उड़ जाती थीं। कुत्ते अगर अपनी कुक्कुरशाला में ठीक से नहीं बँधे होते तो या तो उड़ जाते या गिर जाते। पके हुए सेब जो कि शहद या गिर जाते। पके हुए सेब जो कि शहद की तरह मीठे थे, गिरते और फिर सेब के पेड से उड़ जाते। सेबों को पकने से पहले इकट्ठा करना पड़ता था और वे बहुत खट्टे होते थे और बिल्कुल भी खाने लायक नहीं - ओह! एक खास तरह की रेलिंग लोगों के सहारे के लिए बनायी गयी थीं जब वे गलियों से गुजरते तो इन्हीं पर लटकते हुए जाते थे। किसी भी प्रकार की दुर्घटना को रोकने के लिए, उन लोगों के लिए ऊँचे-ऊंचे खम्भों पर हर गाँव व कस्बे में ऊपर जाल लगाये गये थे। जो लोग रेलिंग को पकड़ना भूल जाते थे ये जाल उनके लिए ही थे। खोये-खोये से रहने वाले लोग या तो ऊपर उड जाते थे या जाल में गिर पड़ते थे। फिर वे जूमीन पर सीढ़ियों से उतरते थे ओर घरों में क्या होता था। कुर्सियाँ और मेजें, अगर मजबूती से फर्श पर नहीं गाड़ी गयी होतीं तो, छत पर गिर जाती थीं। जैसा कि तुम जानते हो, मुराश्का, उन दिनों लोगों के लिए पृथ्वी पर जीवन, आज तुम्हारे कह्ू पर रहने से ज़्यादा मुश्किल था। और लोगों ने पृथ्वी से कहा : “हम जानते हैं कि तुम वास्तव में बहुत दयालु हो। कृपया कुछ ऐसा करो कि हमारा तुम पर से अचानक गिरना रुक जाये।” “ठीक है,” पृथ्वी ने जवाब दिया। “मैं हर चीज पर एक आकर्षित करने वाली शक्ति लगा दूँगी जैसे कि मैं एक चुम्बक होऊँ और तुम सब धातु के बने हो।” 15 /चींटी और अन्तरिक्ष यात्री




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