हिंदुत्व | HINDUTVA

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दामोदर वीर सावरकर - DAMODAR VEER SAVARKAR

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पुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(1|)109060 89५ १७|९५॥ 19111. ॥2 कक आनन्द लें । हिन्दू जेसे पहले थे, वेसे फिर हो जाय॑। हिन्दुत्व ही हिन्दू-जातिका प्राण है ओर यह प्राण ही संघटनका कक. कप है। इसलिये जिस लेखकने हिन्दुत्वके लक्षण बतलानेवाली शास्त्रीय पुस्तक लिखी है उसने सचमुच ही हिन्दू-संघटनकी आधारभूमि ही दिखा दी है। आओ, इस आधारभूमिपेः रः हमे. म आप खड़े हो ज्ञायं, हिन्दुत्वके भंडेके नीचे एक हो उ ५० ँय इस स्मतिवचनको साथ्थक कर कि, (9 येनास्य पितरों याता येन याता: हमर । हे झा देख से तथा हिन्दू-संस्कृतिके इन्दुचत सुशीतरू स्वच्छ प्रकाशका रे तेन यायात्सतां मार्ग तेन गच्दइ टःः प क्ष्मणनारायण गर्दे सूचमा--मुल्ल पुर्तककी भ जे प अ भाषाल्तरमें जो कोई दोष हों काल दिया गया हे जिसमें “हिन्दुइज्म” कि भा बातरमें इस शब्दके विचारकी कोई अआव- प्रतीत हुइ। अन्य सब अध्यायोंका संपूर्या स्तेे के अध्यायपर जो शीषक है वह मूल पुरुतकमें बने जो कोई दोष हुआ हो, घह मेरा है । ल्० नाॉ० गये.




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