वीर बालक | VEER BALAK
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
33 MB
कुल पष्ठ :
89
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक समूह - Pustak Samuh
No Information available about पुस्तक समूह - Pustak Samuh
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वीर वालक लच-कुश श्५
अश्वके आ जानेपर यज्ञका प्रारम्भ हुआ | दुर-दूरसे ऋषि-
गण अपने शिष्योंके साथ अयोध्या पधारे । महर्पि वात्मीकि भी
लव-कुश तथा अपने अन्य शिष्योंके साथ आये ओर सरयूके
किनारे नगरसे छुछ दूर सबके साथ ठहरे | महर्पिके आदेशसे
लव-कुश मुनियोंके आश्रमोमें, राजाओंके शिविरों तथा नगरकी
गलियोंमें रामायणका गान करते हुए घृमा करते थे। उनके स्पष्ट,
मधुर एवं मनोहर गानकों सुनकर लोगोंकी भीड़ उनके साथ
लगी रहती थी । सर्वत्र उन दोनोंके गानकी ही चर्चा होने लगी।
एक दिन मस्तजीके साथ श्रीरामने भी राजमवनपर ऊपरसे इन
दोनों बालकोंका गान सुना | आदरपूरषक दोनोंको मीतर बुला-
कर सम्मानित किया गया ओर वहाँ उनका गान सुना गया |
अठारह सहस्न खर्णम॒द्राएँ पुरस्कारखरूपमें उन्हें भगवान् रामने
देना चाहा; किंतु लव-कुशने कुछ भी लेना अस्वीकार कर दिया।
लव-कुशके कहनेसे यज्ञकार्य से बचे समयमें रामायण-गानके लिये
एक समय निश्चित कर दिया गया | उस समय समस्त प्रजाजन,
आगत नरेश, ऋषिगण तथा वानरादि रामायणका बह अद्भुत
गान सुनते थे। कई दिनोंमें पूरा रामचरित्र सुननेसे सबको ज्ञात
हो गया कि ये दोनों बालक श्रीजनककुमारी सीता के ही पूत्र हैं।
मयादापुरुषोत्तमने श्रीजानकीजीको सब लोगोंके सम्मुख
सभामें आकर अपनी शुद्धता प्रमाणित करनेके लिये शपथ
लेनेकी कहकर बुलब॒ण्या | वे जगज्ननती माता जानकी वहाँ
User Reviews
No Reviews | Add Yours...