अपने समय का आइना | APNE SAMAY KA AAYINA
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
27 MB
कुल पष्ठ :
194
श्रेणी :
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पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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सुभाष सेतिया - SUBHASH SETIA
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अभिव्यक्ति के लिए पूर्ण रूपेण संस्कृति पर अवलंबित हें।
धर्म का संबंध हमारे मनोजगत तथा सामाजिक सरोकारों पर ही समाप्त नहीं
हो जाता हैं; वह हमें आसपास के जीवन और पर्यावरण से जोड़ने में भी सहायक
हैं। नदियों की पवित्रता, पर्वतों की महत्ता, पेड़-पोधों के प्रति अतिरिकत आस्था
जैसे विधान मनुष्य को प्रकृति का महत्त्व ही नहीं समझाते, अपितु उसके साथ
व्यावहारिक संबंध भी स्थापित करते हैं। हिंदुओं के सनातन विश्वासों में तुलसी,
पीपल, कदंब जेसे पेड़ों को देवता तक की मान्यता देना, गंगा को पतितपावर्न
मानना, हिमालय में केलाश-मानसरोवर तथा अन्य असंख्य तीर्थस्थलों की स्थापना,
नदियों के किनारों पर धार्मिक उत्सवों एवं मेलों का आयोजन, देवी-देवताओं की
सवारी के रूप में जीव-जंतुओं की कल्पना आदि सभी उदाहरण धर्म तथा प्रकृति
के गहरे रिश्ते की ओर स्पष्ट संकेत करते हैं। यहां तक कि सांप और सिंह जैसे
हिंसक एवं संहारक जंतुओं का भी शिव और दुर्गा से संबंध जोड़ा गया है। पशुओं
के रूप में विष्णु के अवतारों तक की कल्पना की गई है। तीर्थयात्रा का विधान
सभी धर्मों में है। इसका मुख्य उद्देश्य मनुष्य को प्रकृति के संसर्ग में रहने का
अवसर देना ही है।
धर्म मनुष्य के वेयक्तिक, भोतिक, नैतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक तथा
प्राकृतिक सरोकारों को प्रभावित करता हुआ अध्यात्म के माध्यम से उसे समस्त
जीव-जगत से जोड़ने का भी उपक्रम करता है। नदी के जल से सूर्य का तर्पण
करना, कीटों एवं पक्षियों को दाना डालना अथवा साधना में लीन होकर किसी
दिव्य शक्ति से आत्मा का संबंध जोड़ना, वेयक्तिक तथा भौतिक आकांक्षाओं से
ऊपर उठकर स्वयं को समूचे ब्रह्मांड का अंश मानने की ही प्रक्रिया है। इसी
अनुभूति में से उस सार्वभौम दर्शन की रचना होती है जिसमें मनुष्य अपने या अपने
समुदाय को ही नहीं, अपितु समस्त जीव-जगत के कल्याण की कामना करता
हुआ 'सर्वे भवंतु सुखिन: सर्वे संतु निरामया:' कह उठता है। धर्म का सार्वभौम
एवं विश्वजनीन स्वरूप इस तथ्य से भी व्यक्त होता है कि कोई भी धर्म
भोगोलिक, सामुदायिक तथा राष्ट्रीय सीमाओं में आबद्ध नहीं किया जा सकता।
सभी धर्मों का फैलाव विश्व के सभी भागों में हो सकता है। फिलिस्तीन से फैला
ईसाई धर्म, अरब से फेला इस्लाम और भारत में पनपा बौद्ध धर्म सारे संसार में
व्याप्त है।
इतने व्यापक तथा सार्वजनीन तत्त्व को मंदिर, मस्जिद तक सीमित करना
और अपने-अपने धर्म पर अभिमान तथा दूसरे धर्मों के प्रति घृणा का भाव जगाना
16 ७ अपने समय का आईना
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