उपनिषद प्राचीन कथाएं | Upanishad Prachin Kahaniyaan- Publication Division

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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8 ३ 1 न कक गा | उंपनिषद्‌ प्राचीन कथाएं पृथ्वी की अग्नि का समचित प्रयोग न हो पाने के कारण पृथ्वी पर अभ्रकाल और दुर्भिक्ष पड़ने लगे थे। मार्कण्डेय ने एक वार फिर प्रकृति की इन शक्तियों का अध्ययन किया और लोगों को उनका सही उपयोग सिखाया । इस प्रकार बहुत काल तक अध्ययन-अ्रध्यापन करते-करते मा्कंण्डेय बहुत बूढ़े हो गए । परन्तु उनकी कार्य करने की शक्ति. वही 16 साल के युवक जेसी रही वुद्धावस्था में उनकी भक्ति मां दुर्गा की ओर हुईं । दुर्गा उनके इष्टदेव भगवान्‌ शिव की शक्ति थीं। एक दिन उन्होंने भक्ति के आवेश में मां दुर्गा की स्तुति में सात सौ श्लोक कह डाले । आगे चल कर उनकी यह कृति देवी- महात्म्य या दुर्गा सप्तशती के नाम से प्रसिद्ध हुई। आज सारे विश्व में हजारों भक्तगण देवी की पूजा में मार्कंण्डेय के लिखे स्तोत्न गाते हैं। ऋषि मार्कण्डेय को अपने इष्ट भगवान्‌ शिव और देवी दुर्गा से प्रेम तो था ही, अपनी मातृ- भूमि भारतवर्ष के प्रति भी उनका असीम अनुराग था । अपने महान्‌ ग्रन्थ मार्क॑ण्डेय पुराण में उन्होंने अनेकों स्थानों पर भारतभूमि का वर्णन किया है; उसकी नदियों पर्वतों की स्तुति गाई है। भारत को वे प्यार से जम्बू द्वीप कहा करते थे। एक एलोक में उन्होंने भारत की सब नदियों के नाम गिनाए हैं, गंगा, सरस्वती, सिन्धु, चन्द्रभागा, वितस्ता, यमुना, इरावती, कुहु, गोमती, गंडकी, महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, नर्मदा. ..... - .।' जैसे कोई अपने... प्रियतम का .नाम न वॉरे-बार कागज पर लिखे, उसी प्रकार उन्होंने भारत के ,सुंमस्त पहाड़ों स्षे' चिंकलने वाली संव नंदियीं के नाम लिख डाले । मार्कण्डेय को अपने समय के स्त्री-पुरुषों का भी अ्रैच्छा ज्ञान था.।; अपने परांणः में. उन्होंने सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र की कथा लिखी। मुनि विश्वामित्र ने हरिश्चन्द्र'की परीक्षा लेने के लिए उन्हें वड़े कष्टों में डाला। राजा हरिश्चन्द्र को राजपाट छौड़कर एक श्मशान में नौकरी करनी पड़ी, अपनी पत्नी को बेचना पड़ा, परन्तु-वे अपनी सत्य प्रतिज्ञा से नहीं हटे । इसी बीच उनके पुत्र रोहिताश को सांप ने काट खाया और उंसकी मृत्यु हो गई। माकक॑ण्डेय ने अपने शिष्यों के लिए साध्वी मदालसा की कहानी भी लिखी, जो इतनी विदुषी थी कि उसने अपने सव पुत्रों को स्वयं शिक्षित किया । इनमें अलक सवसे छोटा था, और वहुत ध्यान से पढ़ता था | मार्कण्डेय ने अपने ग्रन्थ में अच्छे और बुरे दोनों प्रकार के मनुष्यों की कहानियां लिखीं। विपश्चित तो इतना दयावान था कि वह नरक भोगते हुए दुष्टों और पापियों की सहायता के लिए, स्वयं भी थोड़े समय के लिए बा कफ 1, 8. - हो आहट मर . प [! 8 बह. -] मु हे र; हे के हैं है नि किले का रहने को तैयार ही गया । दूसरी ओर दम जैसा राजा भी था जिसने अपने पिता की मृत्यु का . बंदला लेने के लिए वषुष्मान्‌ को मार डाला और उसके शरीर से' मांस नोंच कर उससे अपने पिता का तरपंण किया । मार्कण्डेय बहुत काल तक जिए । ' अच्छे, बुरे, स्त्री-पुरुषों को उन्होंने बहुत निकट से देखा । प्रकृति की विनाशकारी और कल्याणकांरी शक्तियों को अलग-ग्ललग पहचाना और फिर अपने इस ज्ञान के निचोड़ को अपनी प्रसिद्ध पुस्तक मार्कण्डेय प्राण में लिख दिया । ध्छे हा >5ल क्र... «७ . मा है __ 1 - है २1-िप7४-17० आला ॥ डो, ॥ ६:17 117




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