दयावान डॉक्टर | DAYAVAN DOCTOR

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सुधा मूर्ति - SUDHA MURTI

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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'सर, फिर तो आपको मेरे घर चलना ही होगा!' डाक्टर चंद्रा ने कहा। “बेटा मैं तुम्हें पहली बार मिला हूं। तुम्हें अच्छी तरह जानता भी नहीं, फिर मैं कैसे तुम्हारे घर जा सकता हूं?” पिताजी ने कहा। “नहीं सर, आपको चलना ही होगा। इससे मेरी मां को बेहद खुशी मिलेगी।' घर पहुंचने पर एक खिचड़ी बालों वाली अधेड़ उम्र की महिला बाहर निकली और उसने सबसे पहले पिताजी के पैर छुए। महिला ने कहा, 'सर, मैं आपकी वो पहली मरीज हूं जिसकी आपने 1942 में डिलिवरी की थी। आप के बताए अनुसार मैं घर छोड़कर पुणे गई और वहां आप्टे क्लर्क से मिली। तब में दसवीं पास भी नहीं थी फिर भी उन्होंने मुझे नर्सिंग कालेज में दाखिला दिया। फिर मैं पुणे में स्टाफ नर्स बनी। घर वालों ने जब पुणे में मेरा पीछा किया तो फिर मैं बम्बई चली गई। जब मैंने पुलिस में रिपोर्ट करने की धमकी दी तब जाकर मेरे घरवाले चुप हुए। मैंने अपनी लड़की को खूब पढ़ाया और उसे डाक्टर बनने के लिए प्रेरित किया। मैंने उससे कहा कि तुम स्त्री विशेषज्ञ बनो जिससे कि तुम भी डाक्टर आरएच जैसी अन्य युवतियों की मदद कर सको।' “कहां है आपकी बेटी?' पिताजी ने उत्सुकतावश पूछा। “यह चंद्रा ही तो मेरी बेटी है। मरने से पहले मैं एक बार अवश्य आपके दर्शन करना चाहती थी। मैंने आपको खोजने का बहुत प्रयास किए पर असफल रही। मैंने आप्टे जी से भी सम्पर्क किया पर तब तक उनका देहांत हो चुका था। आपका पहला नाम रामचंद्रा है। उसके ऊपर ही मैंने अपनी बेटी का नाम चंद्रा रखा। चंद्रा का एक अस्पताल है जिसका नाम है आरएच नर्सिंग होम। वो अगर तीन मरीजों से फीस लेती है तो दो मरीजों को निशुक्ल देखती हेै।' (सुधा मूर्ति इन्फोसिस फाउंडेशन की चेयरपर्सन हैं। 16 अगस्त 2013 को क्रिस्चियन मेडिकल कॉलेज, बेल्लोर के भाषण में उन्होंने यह कहानी सुनाई।) प्रस्तुति: अरविन्द गुप्ता




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