शोध दिशा, अप्रैल - जून 2014 | SHODH DISHA, APR-JUNE 2014

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूख का अधिनियम : तीन कविताएँ एक शायद किसी भी भाषा के शब्दकोश में अपनी पूरी भयावहता के साथ मौजूद रहने वाला शब्द है भूख जीवन में कई-कई बार पूर्ण विराम की तलाश में कोमाओं के अवरोध नहीं फलाँग पाती भूख। पूरे विस्मय के साथ समय के कंठ में अर्द्धचंद्राकार झूलती रहती हे कभी न उतारे जा सकने वाले गहनों की तरह। छोटी-बडी मात्राओं से उकताई भूख को बारहखड़ी हर पल गढ़ती है जीवन का व्याकरण। आखिरी साँस तक फडफड़ाते हैं भूख के पंख कठफोडे की लहूलुहान सख्त चोंच अनथक टीचती रहती हे समय का काठ। भूख के पंजों में जकडी यह पृथ्वी 16 « शोध-दिशा ७ अप्रैल-जून 2014 अपनी ही परिधि में सरकती हुई लौट आती है आरंभ पर जहाँ भूख की बदौलत बह रही होती है एक नदी। दो एक दिन भूख के भूकंप से थरथरा उठेगी धरा इस थरथराहट में तुम्हारी कैँपरकंपाहट का कितना योगदान यह शायद तुम भी नहीं जानते तने के वजूद को क़ायम रखने के लिए पत्तियों की मौजूदगी की द्रकार का रहस्य जंगलों ने भरा है अग्नि का पेट। भूख ने हमेशा से बनाए रखा पेट और पीठ के दरमियाँ एक फ़ासला पेट के लिए पीठ ने ढोया दुनिया-भर का बोझा पेट की तलवार का हर वार सहा पीठ की ढाल ने। भूख के विलोम की तलाश में निकले लोग आज तलक नहीं तलाश सके पर्याय के भँवर में डूबती रही भूख का समाधान। तीन इन दिनों जितनी लंबी फेहरिस्त है भूख को भूखों मारने वालों को उससे कई गुना भूखे पेट फुटपाथ पर बदल रहे होते हैं करवटें। इसी दरमियाँ भूख से बेकल एक कुतिया निगल चुकी होती हे अपनी ही संतानें घीसू बेच चुका होता हे कफ़न कालकोठरी से निकल आती हे बूढ़ी काकी इरोम शर्मिला चानू पूरा कर चुकी होती हे भूख का एक दशक। यहाँ हज़ारों लोग भूख काटकर देह की ज्यामिति को साधने में जुटे रहते हैं आठों पहर वहाँ लाखों लोग पेट काटकर नीडों में सहमे चूजों के हलक में डाल रहे होते हैं दाना। एक दिन भूख का बवंडर उड़ा ले जाएगा अपने साथ तुम्हारे चमचमाते नीड अट्टालिकाओं पर फड॒फडाती झंडियाँ हो जाएगी चीर-चीर फिर भूख स्वयं गढ़ेगी अपना अधिनियम। 3-ए-26, महावीरनगर तृतीय, कोटा 324005 ( राज० ) मो० 09460677636, 60039 45548 ई-मेल- 014 24/०४ए(७श॥]भ। .००॥




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