विज्ञान में परिवर्तन | VIGYAN MEIN PARIVARTAN

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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/1 जात (0प्99 (109 फएलाएणत & 8९00100९ (णआगपगारव्वाण) फालएणा०एछ का वात ॥7:/एएए.5ट0॥110फ9011.1/2015/03/8ए16-2फ9919-1/29०1९079/-11101 .1111| 3009५) को अद्भुत सफलता मिली। शरीर के प्रत्येक अंग पर इन 26 लेखों को जे डी रैडक्लिफ ने लिखा है। किसी भी भारतीय भाषा में इन सुंदर लेखों का अनुवाद नहीं हुआ है। मनीष- हालिया दौर में जिस तरह से युवाओं को विज्ञान शिक्षा दी जा रही है। इस सम्बंध में आपके विचार क्या हैं? अरविंद गुप्ता- हमारे छात्रा विज्ञान को रटकर उनकी परिभाषाओं को परीक्षा में थूक आते हैं। वे बहुत अच्छे अंक भी प्राप्त करते हैं पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण और विज्ञान के अचरज से अछूते रहते हैं। आप तैराकी पर चाहें कितनी भी किताबें क्‍यों न पढ़ लें, आप चाहें तैराकी पर अपनी पीएचडी भी क्‍यों न कर लें, आपको तैराकी तभी आएगी जब आप पानी में कूद कर अपने हाथ-पैर चलाएंगे। यह बात विज्ञान के लिए भी सच है। जब तक बच्चे अपने हाथों से प्रयोग नहीं करेंगे तब तक उन्हें विज्ञान का मजा और मर्म कैसे समझ में आएगा? विज्ञान शिक्षण में आमूल परिवर्तन होने चाहिए। होशंगाबाद विज्ञान कार्यक्रम एक अनूठा प्रयास था। मध्य प्रदेश के एक लाख से अधिक बच्चे गतिविधि आधारित विज्ञान” सीख रहे थे। यह एक बेहद सस्ता और हमारी परिस्थितियों के अनुकूल कार्यक्रम था। पर आज से 15 वर्ष पहले डीपीईपी कार्यक्रम आया। इसमें विश्व बैंक का अथाह कर्ज था जिसे देख राजनैतिक वर्ग की लार टपकने लगी। डीपीईपी कार्यक्रम के लिए सरकार ने होशंगाबाद विज्ञान कार्यक्रम को बंद कर दिया और लाखों बच्चों को अच्छी विज्ञान शिक्षा से वंचित कर दिया। मनीष- इतने लम्बे समय से आप विज्ञान संचारक की भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं। इस लंबी यात्रा के कुछ अनुभव हमारे साथ बांटना चाहेंगे। अरविंद गुप्ता- मुझे अपने देश के 3000 स्कूलों में बच्चों के साथ काम करने का सौभाग्य मिला है। अभी तक मुझे स्कूलों में खराब मैनेजमेंट, खराब प्रिंसिपल और तमाम खराब शिक्षक मिले हैं पर अभी तक कोई खराब बच्चा नहीं मिला है। हर जगह मुझे बच्चों की आंखों में चमक और ज्ञान की भूख नजर आती है। यह सबसे बड़ी उम्मीद है। मुझे 20 देशों में बच्चों और शिक्षकों के साथ काम करने का मौका मिला है। पर हर बार जब मैं अपने किसी स्कूल में जाता हूं तो बच्चों में मुझे आशा दिखती है। हमारी पीढ़ी ने उनके लिए 'मिट्टी नहीं बनाई है”। यह काम अभी अधूरा है और इसे मरते दम तक हमें करते रहना है। मनीष- बच्चों और युवाओं हेतु आपका संदेश। अरविंद गुप्ता- पिछली शताब्दी के महान अमरीकी लेखक मार्क ट्वेन (|४७॥।८ 1५४३1॥) ने कहा था, 'स्कूलों को अपनी असली शिक्षा में मत आड़े आने दो।” यह एक अच्छा मंत्र है। महामहिम अम्बेडकर ने भी हमें यही सीख दी थी, अपनी शिक्षा की जिम्मेदारी खुद अपने हाथों में लो। सरकारी और निजी संस्थाओं, जिनमें स्कूल शामिल हैं, का मुंह मत ताको। उनका नारा था- खुद शिक्षित हो, संगठन बनाओ और संघर्ष करो! मनीष श्रीवास्तव युवा विज्ञान संचारक हैं और वर्तमान में 'इलेक्ट्रॉनिक आपके लिए' ए-16 गौतम नगर, भोपाल, मध्य प्रदेश में सह-संपादक के रूप में कार्यरत हैं। आपसे मोबाइल - 9300270915 पर संपर्क किया जा सकता है। प्रस्तुतकर्ता : 0/243/8॥/ 4॥ 1२9॥115/ 4014 3/16/2015 12:02 ?४/




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