हिंदी के सूफी प्रेमाख्यान | HINDI KE SUFI PREMAKHYAN
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
176
श्रेणी :
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परशुराम चतुर्वेदी - Parashuram Chaturvedi
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १७ )
. है जिनका रूप आधुनिक रूग सकता है । यदि इसकी तुलना इसके सवा सौ वर्ष
. गहले, इसके विषय को हो लेकर लिखे गए शेख मिसार कवि के प्रेमाख्यात
धूसुफ जुलेखा' के साथ की जाय तो उस दया में भी, कुछ न कुछ वेसा अन्तर
., सिद्ध किया जा सकता है, कितु केवल उसके ही कारण, इसकी परंपरागत रचना-
शली में लक्षित होने वाले किसी स्पष्ट विकास का भी बोध नहीं हो पाता, प्रत्युत
ऐसा लगता है कि अभी तक'वही पुराना टकसाल काम देता चला जा रहा है जिसकी
स्थापना इसके लगभग ६ सौ वर्ष पूर्व हुई होगी ।
पता नहीं प्रेमदर्पण” के इधर भी कोई सूफी प्रेसाख्यान लिखा गया है वा
. नहीं। यदि किसी ऐसी रचना का निर्माण हुआ है तो उसका रूप कहाँ तक नवीन
है अथवा किस मात्रा तक उसमें पाये जाने वाले किसी विकास-क्रम का अनमान
किया जा सकता है । इसी प्रकार हमारे पास ऐसा कोई दूसरा साधन भी नहीं
जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि ऐसी रचनाओं का भविष्य क्या हो सकता
है। उपलब्ध सामग्री पर विचार करके इस विषय में, केवल इतना ही मत प्रकट
किया जा सकता है जो इस साहित्य के मूल्यांकन से सम्बद्ध है तथा जिसके
“ अंतर्गत इसके भावी सानव समाज के लिए किसी प्रकार उपयोगी सिद्ध होने वा
न होने की बात भी आ जाती है। हिंदी भाषा सें इसका निर्माण उस समय होने
लगा था जब इसमें एक ओर जहाँ केवल फुटकल रचनाएँ प्रस्तुत की जा रही
थीं, वहाँ दूसरी ओर यदि कोई प्रबंध-काव्य लिखा भी जा रहा था तो वह भी
संभवतः या तो किसो पौराणिक ग्रन्थ का अनुवाद जेसा रहा करता था अथवा
उन अपभ्र श रचनाओं का अनुकरण मात्र था जिन्हें चरिउ' वा 'रासो' जैसे शीषंकों
के अंतर्गत गिनने की परंपरा चली आ रही है। इनमें से चरिउ' काव्यों में उनके
नायकों के जीवन की घटनाएँ विस्तार के साथ दी जाती थीं । उनके चंश परिचय,
- चाल्यावस्था, तीर्थे-म्रमण, शास्त्रास्यास, शासनकार्य, सम्मान एवं देहात जेसे
विषयों का समावेश करके, ग्रम्थ का उपसंहार दे दिया जाता था। कितु रासो
कहे जाने वाले ऐसे प्रन्थो के अंतर्गत अधिकतर उन्हीं बातो की चर्चा की जाती
थी जिनका उनके जीवन में विशेष महत्व था। इसके सिवाय, इन दोनों प्रकार
की रचनाओ के अंग-विभाजन में भी कुछ अन्तर जान पड़ता था, क्योंकि प्रथम
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