महापुराणों के उपदेश | MAHAPURSHON KE UPDESH
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
411 KB
कुल पष्ठ :
49
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आलस्य(सभी कार्यो में ) न करना , एकान्तवासप्रियता, ईमानदारी, चुगली एवं निंदा न करना ,
सतसंग प्रियता ( सदेव ईश्वर के नाम ,स्वाध्याय , संतो आदि का संग । )आदि है 1
3 मन -स्मृति एवं सभी प्रकार के संकल्प -विकल्प करना मन का कार्य है । मन के
सोच -विचार बंद होते डी व्यक्ति ध्यान की अवस्था में पहुंच जाता है और ध्यान परिपक्व होने पर
स्वतः ही समाधी में बदल जाता है | समाधी डी आत्मानुभव का एक मात्र साधन है ।
आत्मानुभव का आंनद प्राप्त करने के पश्चात सभी सांसारिक इच्छाएं समाप्त हो जाती है , सभी
सिद्धियां स्वतः्सुलभ हो जाती है ,व्यक्ति अपने को उस परमात्मा अंश महयूस करने लगता है ।
मन का वश में करने के लिए एकांतसेवन, आसन , इंद्रियों का संयम ,भकक््ति एवं
ध्यान,त्राटक, तन्मात्रा साधना आदि प्रमुख साधन है | ये मन के प्रमुख तप है |
एकांतसेवन - यथा संभव एकांत में रहो, वाद-विवाद से दूर रहो, विचारो से रहित रहो ।
उस समय ईश्वर का स्मर्ण , ध्यान या चिंतन कर सकते है ।
आसन - आसन के अभ्यास से एक डी अवस्था में लम्बे समय तक रहने के अभ्यास
मानसिक एकाग्रता ,भूख -प्यास पर नियंत्रण , सर्दी -गर्मी आदि मौसन को बर्दाश्त करने की
क्षमता , आदि अनेक सिद्धियाँ प्राप्त होती है जो हमारी साधना में बहुत उपयोगी होती है ।
(प्रमुख आसन - सर्वागासन, बद्धपदमासन , पादहस्तासन, उत्कठटासन, पश्च्मोत्तानआसन ,
मयुरासन, सर्पासन, धनुरासन, आदि प्रमुख आसन है )
इंद्रियों का संयम - दृढ संकल्प , स्वाघ्याय , ईश्वर का स्मर्ण , ध्यान आदि साधनों से
इन्द्रियों का संयम किया जा सकता है , जो कि प्रत्येक साधना में अत्यंत आवश्यक है ।
भक्ति -भगवान की शरणागति ,पूजा,नाम का जाप ,स्वरूप का ध्यान ,स्वाध्याय ,सतसंग
आदि प्रमुख साधन है । जिनसे मन की एकाग्रता, ध्यान , समाधि , आत्मसाक्षात्कार एवं ईश्वर
के दर्शन सभी कुछ प्राप्त हो जाता है । भक्ति मार्ग के अन्य साधन जो पापों का नाश करने वाले
एवं स्वर्ग प्रदान करने वाले है जिनमें तीर्थयात्रा , व्रत , यज्ञ, दान, यम -नियम , तप , योग
आदि है 1
भगवान की शरणागति- भगवान की शरणागति में भक्षत अपने सभी हानी -लाभ ईश्वर के
भरोसे छोड़ कर केवल निष्काम कर्म परोपकार के भाव से करता है जिससे उसके मन के सभी
संकल्प- विकल्प,चिंता आदि समाप्त हो जाते है एवं मन में परम शांति एवं एकाग्रता का
साम्राज्य स्थापित हो जाता है । भगवान की शरणागति ही सहज समाधी में परिवर्तित होकर
आत्मसाक्षत्कार एवं ईश्वरदर्शन का माधम बन जाती है । पश्चिम मै इतना तनाव एवं चिंता है कि
हर चार में से तीन आदमी विक्षिप्त हालत में है उसका कारण है वे केवल अपनी मर्जी से चलने
का प्रयास करते है ।
नानक कहते है - उसके हुक्म , उसकी मर्जी के अनुसार चलो । जैसा उसने लिख रखा है वैसा
चलो । उसके हुक्म और उसकी मर्जी के अनुसार सब उस पर छोड़ दो । जैसा वह जिलाए वैसा
जियों , जैसा वह कराए वैसा करो , जहां वह लेजाए ,जाओ ॥। उसका हुक्म ही तुम्हारी एक मात्र
साधना हो । तुम अपनी मर्जी हठाओ उसकी मर्जी आने दो तुम इनकार मत करो । दुःख आये
तो दुः्ख को भी स्वीकार कर लो और अडहडो भाव रखो , धन्य भाव रखो कि अगर उसने दुःख
दिया है तो उसमें भी कोई राज होगा , कोई अर्थ होगा ,कोई रहस्य होगा। तुम शिकायत मत
करो ,तुम धन्यवाद से ही भरे रहो । वह तुम्हें जैसा रखे गरीब तो गरीब , अमीर तो अमीर ,
खुख में तो खुख में दुश्ख में तो दुम्ख में एक बात तुम्हारे भीतर सतत बनी रहे कि मै राजी हूं
तेरा हुक्म मैरा जीवन है । और तुम पाओगे कि तुम शांत होने लगे हा। जो लाख ध्यान मैं
बैठकर नहीं होता था वह उसकी मर्जी पर सब छोड़ देने से होने लगा है और हो डी जाएगा
क्योंकि चिंता का काई कारण नहीं रहा । चिंता क्या है ? जैसा हो रहा है उससे अन्यथा होना
चाहिए था। बेटा मर गया , नहीं मरना चाहिए था पत्नि बिमार है नहीं होनी चाहिए थी ।
व्यापार में घाटा हो गया नहीं होना चाहिए था । पुलिस परेशान कर रही है नहीं करनी चाहिए
1 और जैसा नहीं हो रहा है वैसा होना चाहिए था । धन चाहिए , ञ्र पत्नि. सम्मान
सभी होने चाहिए। इच्छाएं एवं चिंता ही ध्यान को विकृत करती है । तब तुम कैसे शांत हो सकोगे
।
जो लिखा है वही होगा, अपनी तरफ से कुछ भी करने का कोई उपाय नहीं है । कोई
परिवर्तन नहीं हो सकता फिर चिंता किस बात की ?जब तुम बदलना ही नहीं चाहत कुछ , जब
तुम उससे राजी हो , उसकी मर्जी में राजी हो जब तुम्हारी अपनी कोई मर्जी है ही नहीं तो कैसी
बैचेनी ,तब कैसे विचार, तब सब हल्का हो जाता है [पंख लगजाते है तब तुम आकाश में उड़
सकते डा , उसका एक ही सुत्र है परमात्मा की मर्जी ॥
अपनी तरफ से तुमने बहुत कोशिश करके देख ली क्या हुआ तुम वैसे- के वैसे हो जैसा
उसने भेजा उससे अपनी कोशिशों के कारण विकृत भले ही हो गए , खुकृत नहीं हुए । तुम्हारी
कोशिश ४००२ तनाव और चिंता ही देगी । समस्या हल न कर सकेगी ॥ समस्या उसकी कृपा से
डी हल होगी ।
नानक कहते है न जप ,न तप, न ध्यान , न धारणा एक ही साधना है उसकी मर्जी
जैसे ही तूम्हें उसकी मर्जी का ख्याल आयेगा तुम पाओगे भीतर सब कुछ हल्का हो जाता है ,
एक गहन शांति, एक वर्षा होने लगती है ।
तुम तेरो मत बहो बहो , नदी ये लड़ो मत । नदी दुश्मन नहीं है मित्र है तुम बहो लड़ने
से दुश्मनी या तनाव पैदा होता है । जब तुम उल्ठी धार तैरने लगते हो नदी तुमसे संघर्ष करने
लगती है ॥। तुम सोचते हो नदी तुमसे दुश्मनी कर रही है | नदी को तुम्हारा पता भी नहीं है ।
तुम्हारी मर्जी यानी उलल््दी धारा , अहंकार यानी उलल्ठदी धाया | उसकी मर्जी तुम धारा के साथ एक
हो गए । अब नदी जहाँ ले जाए वही तुम्हारी मंजील है , यदि डुबो दे तो भी वही मंजील है 1
फिर कैसी चिंता कैसा दुखः
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