मानस कौमुदी | MANAS KAUMUDI

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फादर कामिल बुल्के - FATHER CAMIL BULCE

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(११) वाल्मीकि में मायासीता और रावण द्वारा उसके हरण का चृत्तान्त नहीं मिलता और ने हो उसमे सेतुबन्ध के समय रास द्वारा शिव की प्रतिष्ठा की कथा आती है। ये दोतों प्राय अध्यात्मरामायण में भी है 1 किन्तु, मानस के कथानक को केवल वाल्मीकि और अध्यात्मरमायण की सामग्री तक सीमित कर देखना उचित नही है। इस पर प्रसन्नराधव, महानाटक, शिवपुराण, भुशु डिरामायण, भागवतपुराण आदि कई रचनाओ का प्रभाव पड़ा है। सती द्वारा राम की परीक्षा का प्रसग शिवपुराण से यृहीत है तथा पुष्पवाटिका का प्रसंग प्रसन्नराघव से । प्रसन्नराघव में सीता पृजा करने के लिए चण्डिकायतन की ओर जाती है, तो राम सीता और उतकी सखियो का वात्तालाप छिप कर मुनते हैं । दोनो एक दूसरे को देखते और अनुरक्त हो जाते हैं। कुछ संशोधन के साथ यही प्रध्तय मानेस में आया है । घनुष-भग के बाद आयोजित परशुराम- लक्ष्मण-सवाद भी प्रसनराधव पर आधारित है। विल्क्ृट में जनक के आगमन ( अयोध्याकाण्ड ) और पस्पा-सरोवर के किनारे नारद के आगमन तथा रास गारद- सवाद ( भरण्यकाण्ड ) के स्रोत क्रमश श्रवणराम्रायण और रामगीतगोविन्द हैं। लंकाकाण्ड का अगद रावण-सवाद महानाटक पर आधारित है। ब्यौरे मे जा कर देखते पर मानस के कथानक के कई छोटे-बड़े प्रसण वाल्मीकि और अध्यात्म- रामायण से भिन्न खोतो पर आधारित सिद्ध होते हैं । लेकित, इसका अथे यह नहीं कि मानस यहाँ-वहाँ से गृहीत सामग्री पर आधारित रचना है। अपनी सम्ग्रता में यह एक सौलिक कृति है। इसकी मौलिकता पूर्व॑परम्परा से गृहीत सामग्री के चयत और व्यवस्यापत में है, जिसके पीछे भक्त, समाजनिर्माता और कवि की सम्मिलित दृष्टि काम करती है। इसमे कथा के शिल्प, राम तथा उनसे जुडे हुए पात्रों की चरिव्रगत मर्यादा और अपने मुख्य प्रतिपाद्य विपय भक्ति की दृष्टि से बहुत से प्रसगो को या तो पूरी तरह छोड़ दिया गया है या उतका सकेत भर किया गया है तथा कई घटनाओं का क्रम परिवत्तित कर दिया गया है । छोडे हुए कुछ प्रसव और विवरण हैं--राम और सीता की झू॑गारिक चेष्टाएँ शस्बुक-वध और सीता-त्याग। जहाँ वाल्मीकि राभाषण में राजा दशरय के अश्वमेध यज्ञ के सकलप के बाद ऋष्यश्व ग की कथा ( वालकाण्ड, सगे ६-११ ), अश्वमेध यज्ञ ( सर्ग १२-१४ ) और पुव्नेष्टि यज्ञ ( सगे १५-१८ ) का विह्ठृत विवरण मिलता है, वहाँ मानस में पूरे विषय को बहुत कम पक्तियो मे समाप्त कर दिया गया है ( दे” मावस-कौमुदी, स० १६ )1 वाल्मीकि मे, मृत्यु से पूर्व दशरथ कौशल्या को अन्धतापस की कया सर्ग ६३-६४ मे




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