उत्तराखण्ड का सोना 'बाँज ' | UTTARAKHAND KA SONA - BAANJH
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
31
श्रेणी :
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पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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शरदचन्द जोशी - SHARAD CHAND JOSHI
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)4. पर्यावरण विकास-संरक्षण एवं रखरखाव के प्रश्न
हमारे चारों ओर जो भी प्रकृति और मनष्य द्वारा बनाई गई चीजें हैं, वे सब
मिलकर पर्यावरण बनाती हैं। जिस मिट्टी में पेड़-पौधे उगते हैं और बढ़ते हैं
जिस हवा में हम सांस लेते हैं तथा जो पानी हम पीते हैं, ये सब पर्यावरण के मख्य
अंग हैं। ये समस्त जैविक व अजैविक तत्व जैसे जीव-जन्त, कीटाण. पेड-पौधे
जलवायु, मिट्टी, पानी आदि संतुलित रूप से मानव के लिए एक स्वस्थ वातावरण
का निर्माण करते हैं। यह संतुलन प्रकृति में सहअस्तित्व एवं पारस्परिक
अन्तसम्बन्धों की भावना का भी प्रतीक है। स्वाभाविक रूप से इन तत्वों में किसी
एक के भी हास का परिणाम सम्पूर्ण वातावरण क्रिया के लिए हानिप्रद और
अन्ततः मनष्य के लिए विनाशकारी सिद्ध हो सकता है।
उदाहरण के लिए एक तालाब में जहां मिट॒टी, पानी, हवा जैसे अजैविक तत्व
हैं, वहीं इसमें पानी में उगने वाली नाना प्रकार की वनस्पति भी पायी जाती है।
तालाब के इन पौधों में असंख्य प्रकार के कीड़े-मकोड़े पैदा होकर विकसित होते
रहते हैं। इसी तालाब के समीप ही मेंढ़क की उत्पत्ति एवं इसके निवास की आदर्श
दशायें भी पायी जाती हैं, जिनका मख्य भोजन तालाब के पानी व नजदीकी भागों
में पलने वाले कीड़े-मकोड़े होते हैं। पानी व इसके आस-पास रहने वाला सांप
अपने अस्तित्व के लिए इन मेंढ़कों को अपना भोजन बनाता है और अन्ततः इन
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चित्र 7 : जैविक-अजैविक तत्वों के मध्य संतुलन चक्र
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