दीमक | DEEMAK

DEEMAK by अरविन्द गुप्ता - Arvind Guptaकुदसिया जैदी - Kudsia Jaidi

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

कुदसिया जैदी - Kudsia Jaidi

No Information available about कुदसिया जैदी - Kudsia Jaidi

Add Infomation AboutKudsia Jaidi

पुस्तक समूह - Pustak Samuh

No Information available about पुस्तक समूह - Pustak Samuh

Add Infomation AboutPustak Samuh

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
कमल ने पूछा, “सामना आप किस तरह करते है?” सिपाही ने उत्तर दिया, “प्राणों पर खेल कर हम बस्ती को बचाते हैं। कुछ लम्बी कहानी हे, इसे ध्यान से सुनिए। दीमक दुर्बल कीड़ा होने के कारण अपने शत्रु का सामना मैदान में आकर नहीं कर सकती। अपनी दुर्बलता को भली भाँति जानने के कारण वह जमीन के अन्दर रहती है ओर घर की छत, जो बाहर से टीले की तरह होती है, इतने पक्के मसाले से बनाती है कि यदि मनुष्य इसे हथोड़े से तोड़ना चाहते तो भी कठिनता से ही टूटती है।” कमल ने पूछा, “दीमक मसाला कहाँ से लाती हे” सिपाही ने उत्तर दिया, “यह मसाला दीमक अपने आप ही बनाती है ओर उसे वह बीठ, रेत और लकड़ी के कणों को मिला कर तैयार करती है।” कमल ने कहा, “तो फिर आपका छत्ता क्‍या हुआ अच्दा खासा सीमेंट का किला हो गया! शत्रु तो उस पर आक्रमण कर ही नहीं सकता। ” सिपाही ने कहा, “कभी - कभी बस्ती के रोशनदानों में से च्यूँटि हम पर आक्रमण कर देती है।” कमल ने पूछा, “तो आप इस आक्रमण को किस तरह रोकते हें?” सिपाही ने कहा, “आक्रमण की सूचना संकट की घंटी से सब सिपाहियों को मिल जाती है। यह सब सिपाही अपनी अंधेरी बैरकों में बेठे घंटी बनजे की इन्तजार करते रहते हैं।” कमल ने पूछा, “आपको अंधेरे में दिखाई केसे देता होगा? ” सिपाही ने उत्तर दिया, “हमारी बस्ती में राजा, रानी और पंख वाली दीमक को छोड़कर ओर किसी की आँ खें नहीं होती। हम लोग कानों से नुसकर ओर मुह से छूकर सब काम करते हें।” कमल ने पूछा, “तो क्‍या आप भी ......... हं सिपाही ने बात काट कर कहा, “आप शरमाते क्‍यों हें? साफ कहिए ना। जी हाँ, में भी अपने भाई बन्ध ओ की तरह अंधा हूँ। हमारे यहाँ अंधा होना कोई बीमारी या कमजोरी नहीं समझी जाती। हम लोग तो सभी अंधे होते हैं ओर अंधेरे घुप में आँखों की आवश्यकता भी क्‍या है हा $%1०, कर ॥ | | / 2 कमल ने कहा, “छोड़िए इस बात को। आप तो है मुझे यह बात रहे थे कि संकट की घंटी सुनते ही आप अंधेरी बेरेकों में से निकल आते हैं। तो बताइए फिर क्‍या होता है?” श्र सिपाही ने उत्तर दिया, “हमारी सदा की बेरिन च्यूँटी » दिन रात हमारी बस्ती के बाहर चक्‍कर लगाती रहती है कि कहीं कोई छेट मिले तो हम पर आक्रमण कर दे ओर यदि संयोग से बस्ती का रोशनदान, जिसे हम हवा आने-जाने के लिए बनाते हैं, उसे दिखाई दे जाता है तो वह अचानक . आक्रमण कर देती है। इसीलिए रोशनदानों पर सिपाहियों का पहरा रहता है। जहाँ सिपाही ने च्यूंटी की आहट सुनी उसी समय अपने सख्त जबड़ों से वह जमीन पीटना आरम्भ कर देता है। इस घंटी के सुनते ही सब सिपाही बैरेकों से बाहर निकल आते हैं ओर संकट के स्थान पर पहुँच जाते हैं। वे ज : बड़े-बड़े मजबूत सिरों से छोटों को बन्द करने की कोशिश | हैं।” । कमल ने पूछा, “तो क्‍या सब सिपाही छेद के पास हे पहुँच जाते हें?”




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now