मूर्खों का स्वर्ग | MOORKHON KA SWARG

MOORKHON KA SWARG by पुस्तक समूह - Pustak Samuhशंकर - Shankar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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देहाती ओर उसका बेटा एक देहाती ने अपने बेटे से कहा, मैं चाहता हूं कि कल तुम सुबह-सुबह शहर जाओ। ठीक है पिताजी। मैं बांपस कब तक आऊं?” शाम तक।




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