कटोरा भर खून | KATORA BHAR KHOON

KATORA BHAR KHOON by अरविन्द गुप्ता - Arvind Guptaदेवकी नन्दन खत्री - Devaki Nandan Khatri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१७ कोई ठिकाना न रहा क्‍योंकि इसी लाश को उठा कर वह गाड़ने के लिए एकान्त में ले गया था और जब माली की ज्ञोंपड़ी में से कुदाल लेकर आया तो वहां से गायब पाया था। देर तक ढूंढने पर भी जो लाश उसे न मिली अब यकायक उसी लाश को फिर उसी ठिकाने देखता है जहां पहिले देखा था या जहां से उठा कर गाड़ने के लिए एकान्‍्त में ले गया था। महाराज के आदमियों ने इस लाश को देख कर रोना और चिल्लाना शुरू किया। खूब ही गूल-शोर मचा । अपनी-अपनी क्ोंपडियों में बेखबर सोबे हुए माली भी सब जाग पड़े और उसी जगह पहुंच कर रोने और चिल्लाने में शरीक हुए । थोड़ी देर तक वहां हाहाकार मचा रहा, इसके बाद बी रसिह ने अपने दोनों हाथों पर उस लाश को उठा लिया तथा रोता और आंसू मिराता महाराज की तरफ रवाना हुआ | रे आसमान पर सुबह की सुफेदी छा चुकी थी जब लाश लिए हुए बीरसिंह क्रिले में पहुंचा । वह अउने हाथों पर कुंअर साहब की लाश उठाये हुए था। किले के अन्दर की रिआया तो आराम में थी केवल थोड़ें-से बुडढे, जिन्हें खांसी ने तंग कर रक्‍्खा था, जाय रहे थे और इस उद्योग में थे कि किसी तरह बलगम निकल जाए और उतकी जान को चैन मिले। हां, सरकारी आदमियों में कुछ घबराहट-सी फैली हुई थी और वे लोग राह में जैसे-जेस बीरसिह मिलते जाते उसके साथ होते जाते थे, यहां तक कि दीवानखाते की ड्योढ़ी पर पहुंचते-पहुंचते पचास आदमियों की भीड़ बीरसह के साथ हो गई, मगर जिस समय उसने दीवानखाने के अन्दर पर रकक्‍्खा, आठ-दस आदमियों से ज्यादा न रहे । कुंअर साहब की मौत की खबर यकायक चारों तरफ फैल गई और इसलिए बात-की-बात में वह किला मातम का रूप हो गया और चारों तरफ हाहाकार मच गया। दीवानखाने में अभी तक महाराज क रनसिह गद्दी पर बेठें हुए थे | दो-तीन दीवारगीरों में रोशनी हो रही थी, सामने दो मोमी शमादान जल रहे थे। बीर- सिंह तेजी के साथ कदम वढ़ाए हुए महाराज के सामने जा पहुंचा और कुंअर तदव1 83007 1] ; # एव प०९5१०9ए7 70% 91992२६९ ००




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