जब में छोटा था | JAB MAIN CHOTA THA
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
46
श्रेणी :
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पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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सत्यजीत राय -SATYJIT RAY
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ढाक-ढोल बजाकरर, पेंडेल लगाकर, मृति सजाकर हिन्दू पूजा में जो
एक हो-हलला और तामझाम है, ब्राह्म उत्सव में वह कंतई नहीं था।
दीवाली के पटाखे छोड़ने और गुब्बारा उड़ाने में हम भी शामिल होते थे,
और हमारे जमाने के अनार-हाऊई-फुलझ ड्रो-रंगमशाल-चटपटी तथा
चीनी पटाखे छोड़ने में जो आनन्द था, वह इस जमाने के कान फाड़ने-
वाले, सीना कँपानेवाले बम-पटाखों में बिल्कुल नहीं है। मगर साल के
कई-कई खास दिनों में सारे शहर को मिलकर मजे करने का मामला
ब्राह्मों में नहीं था। द
शायद इसीलिए ईसाइयों के बड़े दित को अपने पर्वों के बीच ठेल
लेने की एक कोशिश हमेशा रही । बड़ा दिन आने पर इसी लिए मन नाच
उठता था।
कलकत्त में उन दिनों साहबों की बड़ी दृकान (आजकल जिसे डिपार्टे-
मेण्ट स्टोर कहते हैं) थी -ह्व|इट आओये लेइउले । चौरगी में अभी जहाँ
मेट्रो सिनेमा है वहाँ स्टेट्समैन पत्रिका का दफ्तर था। उसकी बगल में,
सुरेन बनर्जी रोड के मोड़ पर घड़ीवाला बड़ा मकान था--ह्वाइट आभओये
का मकान । विशाल दुमंजिले मकान की पूरी दूसरी मंजिल ही बड़े दिन
पर कई दिन तक 'टॉयलैण्ड' बन जाती थी। एक बार मैं भी माँ के साथ
यह टायलेण्ड देखने गया ।
सारे देश में गोरों का राज्य | छ्वाइट आओये गोरों की दूकान।
बेचनेवाले सभी साहब; खरीदारों में भी अधिकतर साहब-मेमसाहब ।
जाकर सारा कुछ देख-दाख कर आँखें चौंधिया गयीं। मगर टायलेण्ड में
जो जाऊंगा, दुमंजिले के लिए सीढ़ी कहाँ है ? जिन्दगी में यहीं पहली
बार जाना कि लिफ्ट किसे कहते हैं । ह्वाइट आओये की दूकान की लिफ्ट
ही शायद कलक ते को पहली लिफ्ट थी ।
सुनहरे रंग के लोहे के पिजड़े से दुमंजिले में आकर लगा कि किसी
स्वप्नराज्य में आया हूँ। बीच में बहुत सारी जगह घेरकर पहाड़, नदी,
ब्रिज, टोनेल, सिग्नल, स्टेशन सहित खिलौना रेलगाड़ी टेढ़े-मेढ़े चक्कर
मारकर रेल लाइन से चल रही है। इसके अलावा घर के चारों ओर
रंग-बिरंगे गुब्बारे, रंगीन कागज की सीकड़ी, झालर, फूल, फल और
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चीनी लालटेन । उसके ऊपर रंग-बिरंगे गेंदों और त।रों-भरा क्रिसमस टी
ओर जो सबसे अधिक ध्यान खींच रहा है वह है--फूले हुए गालोंवाला
मुस्कुराता दढ़ियल चेहरा, लाल कमीज, पैण्ट और टोपी में सजा-धजा
तीन आदमियों के बराबर ऊंचा फादर क्रिसमस !
खिलौने जो हैं सारे-के-सारे विलायती । उनमें से जो हमारे बते का
है, ऐसा एक बक्सा क्राकार लेकर घर लौटा | वैसा क्राकर अब नहीं है।
जंसी उसकी आवाज, वेसी ही खूबसूरत उसके भीतर की छोटी-छोटी
चीजें ।
बड़ी और खूबसूरत दृकान कहने पर उन दिनों मन में जो चित्र
बनता था, वसी दूकानें अधिकतर चौरंगी में ही थीं। उनमें से ह्वाइट
आओयबे के पास ही एक दूकान थी बंगाली की दृकान--कार एण्ड महाल
नवीश | ग्रामोफोन और खेल के सामानों की दृकान | दूकान पर जो
बेठतें थे उन्हें हम लोग चाचा कहते थे--बुला चाचा। इस दूकान में ए
मजंदार कुर्सी थी--असल में वजन की एक मशीन ! चौरंगी इलाके में
जाने पर बुला चाचा की दृकान में कुर्सी पर बैठकर वजन लेने की आदत
पड़ गयी थी। पिताजी की मृत्यु के बाद इन बुला चाचा ने ही मुझे एक
ग्रामोफोन ला दिया था। उसी समय से मुझे ग्रामोफोन और रिकार्ड का
शौक है। मेरे खुद के दो खिलौना ग्रामोफोन थे, जिन्हें सम्भवतया बला
चाचा ने ही दिया था । एक का नाम पिगमीफो और दूसरे का किडीफोन।
उनके साथ गाने बजाने के पूरी के आकारवाले कई विलायती रिकार्ड
भी थे ।
कलकत्त का रेडियो स्टेशन चालू होने के कुछ ही दिनों बाद बला
चाचा ने मेरे जन्मदिन पर एक रेडियो उपहार दिया था । वह रेडियो
आजकल के रेडियो की तरह नहीं था, उसे कहते थे-- क्रिस्टाल सेट । कान
में हेडफोन लगाकर सुनना पड़ता था, यानी एकसाथ एक आदमी से
अधिक रेडियो-प्रोग्र।म सुन नहीं पाते थे।
बुला चाचा के साथ ही हम लोग एक बार आउटम रेस्टोरेण्ट में
गये थे। आउट्रम घाट पर यह खूबसूरत रेस्टोरेण्ट पानी में तैरता था ।
देखने में ठीक जहाज के डेक की तरह । आजकल आउटम घाट जाने पर
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