राष्ट्र सेवा दल | RASHTRA SEVA DAL - ITIHAS OR KARYA

RASHTRA SEVA DAL - ITIHAS OR KARYA by अरविन्द गुप्ता - Arvind Guptaएम० बी० शाह - M. B. SHAH

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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राष्ट्र सेवादह के सैनिकोंपर सुभाषबाबू और आजाद हिंद की कथाओंका काफी असर था। कविश्रेष्ठ वसंत बापट का गीत सेवादल की शाखाओंपर सैनिक मुक्त कंठसे गाते थे। “जय सुभाष, जय सुभाष, मंत्र हाच, आजला घोष हाच गाजला। भारतात दशदिशात नाद हा निनादला” चलता हुआ लावा - साने गुरुजी महाराष्ट्र के प्रेरणा-पुरुषोंके शीर्षस्थ नामोंमें एक नाम है पू.साने गुरुजी का। महाराष्ट्र उन्हें माँ” मानता है। मातृत्व का जैसा सर्वस्पर्शी अविष्कार सूरदासमें मिलता है, वैसाही सर्वस्पर्शी आविष्कार साने गुरुती के जीवन और साहित्यमें भी मिलता है। वे राष्ट्र सेवादल के शलाका पुरुष थे। महाराष्ट्र की युवा पीढी तब भी और आज भी गुरुजीके जीवन तथा विचारोंसे प्रेरणा ग्रहण करती है। स्वभाव से अत्यंत विनम्र और छुईमुई की तरह सदा अपने आपमें बंद रहनेवाले गुरुजी जब भी किसी अन्याय के खिलाफ उठ खडे होते तब साक्षात्‌ 'जछता हुवा लावा” बन जाते। उनमें एक ऐसी आग धधक उठती जो फौलाद को पानी की तरह गछा देनेकी क्षमता रखती थी। लोकनायक जयप्रकाश नारायणने १९४२ के आंदोलनमें गुरुजी को सुना और वे चकित रह गए। बहुत साधारण-से दिखनेवाले इस आदमीमें इतनी आग! इतना तेज! इतना धैर्य ! गुरुजी न सेवादल के संस्थापकोंमें थे, न उसके नियामक मंडल में! परंतु वे 'सेवादछह को अपनी जान मानते थे। समाजवादी समाजव्यवस्था के लिए निरंतर प्रयत्नरत गुरुणीका यह विश्वास था कि इस न्यायूपूर्ण समाजव्यवस्था को स्थापित करनेमें हरावछहू का दस्ता किसी राजनीतिक पार्टका नहीं, वरन्‌ सेवादलकाही रहेगा। सेवादल की हर गतिविधिपर उनकी नजर रहा करती थी। उनकी प्रेरणासे सैकडों युवक-युवतियां सेवादल की शाखाओंपर आने ढछगे। १९४२ के आंदोलनमें वे गुरुतीही थे जो गांव गांव जाकर क्रांतिका अछख जगाते थे। उनकी प्रेरणासे १०-१२ सालके किशोर तक आंदोलनमें कूद पडे। शिरिषकुमार, छालदास, शशीधर जैसोंने अपनी बलि तक चढायी थी। १८ / राष्ट्र सेवा दल - इतिहास और कार्य ९ अगस्त का जुनून सारे देशकी जनता के सिरपर चढकर बोल रहा था। छोटे लडके तक उस रंगमें पूरी तरह रंग गये थे। शहर नंदुरबारमें स्कूल के बच्चोंका नेतृत्व करता था किशोर शिरिषकुमार। उसके पिता पुष्पेंद्रभाई और मां सविताबेन राष्ट्रीय विचारों के थे। गांधीजी उनके जीवन की प्रेरणा थे। शिरिषकुमार को देशप्रेमका दाय अपने घरसेही मिला था। ९ अगस्त को गांधीजी को पकडा गया तो शिरिषने और उसके दोस्तोंने शहरमें एक जुलूस निकाला। पुलिसने शिरिष को पकड़ कर लॉकअपमें बंद कर दिया। पिताने चाहा कि उसे जमानत पर छुडा ले। पर शिरिषनेही निर्धारपूर्वक “ना” कहा। बच्चोंने पुलिस कचहरीमें धूम मचायी। अंततः शामको सभी को छोड दिया गया। अगले पूरे माहभर शहरमें सरकार विरोधी गतिविधियां चलती रहीं। पोस्टर्स छपते रहे। छोटे बडे जुलूस निकले। भारत छोडो', चले जाव', 'भारत माता की जय', “जय हिंद' के नारोंसे पूरा शहर गूंजता रहा। यह तय हुआ कि ९ सितंबर को एक बडा जुलूस निकालकर सरकारी कचहरीपर तिरंगा लहराएंगे। शिरिषकुमार इस जुल्स का नेतृत्व कर रहा था बच्चे स्कूलमें इकट्ठा हुए, स्कूल को इमारतपर तिरंगा छहराया और “महात्मा गांधी को जय” के नारे लगाते हुए चल पडे। जगह जगह पर जुढ़ूस में छोटे- बडे शरीक हो रहे थे। उसका आकार और उत्साह दोनों बढते जा रहे थे। सरकारी कचहरी पर तिरंगा फहराकर जुलूस माणिक चौक की ओर मुडा। नहीं नमशे, नहीं नमशे - निशान भूमि भारतम्‌ जुल्स मस्तीमे यह गीत गाता हुआ आगे बढ रहा था। माणिक चौक में पुलिस लाठी, काठी, बंदूकोंसे ढैस होकर खडी थी। शिरिषकुमार और उसके साथी माणिक चौक में भी तिरंगा फहराना चाहते थे। और पुलिस उसके लिए “ना' कह रही थी। उसका कहना था कि, जुलूस खत्म करो और घर जाओ, वरना सर तोड देंगे।' भीडका उत्साह बढ रहा था। आखिर उसे काबूमें करने के लिए पुलिसने छाठी चलाना शुरू कर दिया। चारों ओर भगदड मच गयी। पर शिरिषकुमार और उसके साथी हाथमें तिरंगा लेकर मोर्चेपर डटे थे। पुलिस उनपर काबू पा नहीं रही थी। पुलिस अफसरने शिरिषकुमार को बार बार झंडा देने के लिए कहा। वह बिना डरे हाथमें झंडा उठाकर, “जय हिंद' के नारे लगा रहा था। लडके एक हाथसे दूसरे हाथमें झंडा सौंपते। पुलिस उसे पाने राष्ट्र सेवा दल - इतिहास और कार्य / १९




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