प्राचीनता का भविष्य | ANCIENT FUTURES

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हेलेना नार्बर्ग - HELENA NORBERG

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्राचीनता का भविष्य 14 मैने उनके साथ काम करना आरंभ किया उसके कुछ ही समय बाद उन्होंने निम्नांकित कविता मेरे लिये लद्दाखी में लिखी और बाद में उसका अंग्रेजी में अनुवाद भी किया : महान यूरोप जहाँ तुमने जन्म लिया था, अनेक स्वतंत्र राज्य फल- फूल रहे हैं, अकल्पनीय भोतिक सम्रद्धि के साथ, उद्योग ओर टेकनालॉनजी। वहाँ सांयारिक सुख अधिक हें; जीवन अधिक व्यस्त है। अधिक विज्ञान व साहित्य, हालावों में अधिक पारिवर्तन। यद्यपि यहाँ हम ग्रगति में पीछे हैं, हमारे पास सुखी गन की शांति है। यद्यपि हमारे पास टेक्‍्नालॉजी नहीं है, हमारे पास गहन धर्म का मार्ग है। हमारी भाषा लद्ाख ओर तिब्बत में, विद्वान लामाओं की ज़बान है। यह कोश धर्म से भरा है, कोर्ड और ज़बान इसकी समतुल्य नहीं है। घटना के समस्त वेभव को, सर्तक मन से देखो। क्या कोड लोकोत्तर अर्थ है? मुझे कोई अर्थ नहीं मिला। किसी के पास अत्यधिक वकस्तुएँ भोग हेतु हो; समृद्ध सुख अकूत हे; किसी के पास बहुत ख्याति व शक्ति हे; . मृत्यु उससे भी सब छीन लेगी। मृत्यु के समय, कार्यों को छोड़कर, विभाजित धन को ले जाने का कोई उपाय नहीं है। हम जो भले या बूरे कृत्य करते हैं वे ही हमारे सुख या दुःख के सर्जक हैं। छोटा तिब्बत यदि धर्म तत्त्व को नहीं पा सके, तो द्वद्र की श्रांति रह जाएगी। जब तक कि समझ, शब्दों से आगे नहीं जाती, शब्दावली के शब्दों का कोई अंत नहीं है। अब मन लगाकर कठोर श्रय करो, शीघ्र ही समझ जाओगी। तुम वह स्मरणीय दृश्य देखोगी, मेरा कहा भी स्पष्ट हो जाएगा। यद्यपि लद्दाखी भाषा मेरे कार्य की प्राथमिकता बनी रही पर लोगों के प्रति मेरे मन में सम्मोहन बढ़ता गया। उनके मूल्यों और वे दुनिया को किस नज़र से देखते हैं, इसको लेकर। वे क्‍यों सदा मुस्कुराते रहते हैं? और वे अपने को ऐसे प्रतिकूल वातावरण में किस तरह बचाकर आरामदायक स्थिति में रखते हें? पारंपरिक जीवन से मेरा प्रथम परिचय सोनम से प्राप्त हुआ जो हेमिस शुक्पाचन गाँव का एक नवयुवक था। लगभग पाँच फुट दो इंच की ऊँचाई के कारण वह बहुत छोटा था और हर कोई उसे बालू” अर्थात बौना कहता था। सोनम लेह में शिक्षा विभाग में लिपिक था, जबकि उसका परिवार गाँव में ही रहता था। मेरे वहाँ पहुँचने के कुछ ही समय बाद वह घर जा रहा था और उसने मुझे साथ चलने के लिये आमंत्रित किया। हम सबसे पहले रिज़दांग के मठ में गए। सोनम के भाई थुंडप से मिलने, जो वहाँ का गोनियर” या चाभी-धारक था। लद्दाख के सभी मठों में रिज़दांग सर्वाधिक सम्माननीय है। यहाँ के भिक्षु तिब्बती महायान बुद्धवाद की पीली टोपी धारण करने वाले होते हैं, जिसकी स्थापना महान सुधारक त्सोंग्पा ने सोलहवीं शताब्दी में की थी और जिन्हें सामान्यतः: अधिक कठोर एवं पुराने लाल टोपी वर्ग की तुलना में अधिक अनुशासित माना जाता है। मठ का आदर एवं भय उत्पन्न करने वाला भवन बंजर पहाड़ों के मध्य स्थित है और यहाँ इसकी अनंत शांति व खामोशी फैली हुई है। उसके आगे विशाल सफेद दीवारे हैं जिन पर गहरा बैंगनी रंग किया हुआ है जो ऐसा लगता है कि वह स्वयं किसी चट्‌टान का हिस्सा हो। ऊँचा, आड़ा-तिरछा रास्ता जो हमें घाटी के नीचे से पहाड़ के ऊपर प्रवेश द्वार तक ले गया, उसमें लाल-लबादाधारी आकृतियों की लंबी कतार थी। पहले यह किसी जुलूस जैसा लगा, पर जब हम निकट तक आए तो देखा कि भिक्षु लोग पत्थरों को उठा कर व्यवस्थित ढंग से रख रहे थे और कीचड़ के ढेर तथा पत्थरों के टुकड़ों को हटा रहे थे। तूफान ने रास्ते के एक भाग को




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