साहब का बाबा | SAHAB KA BABA

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पुस्तक समूह - Pustak Samuh

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श्री लाल शुक्ल - SHRI LAL SHUKL

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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86/11/2016 वे न जाने क्या-क्या बकते रहे। मैं हारा-सा, पिटा-सा सुनता रहा; सोचता रहा, संसार असार है। कोई किसी का नहीं। कामिनी कंचन का मोह वृथा है। स्वामी रामकृष्ण परमहंस का वचन है कि अनासक्त हो कर रहो, जैसे तुम अपने दफ्तर की संपत्ति को अपनी कह कर भी अपनी नहीं मानते, जैसे तुम्हारी आया तुम्हारे बच्चों को अपना मुन्ना बताते हुए भी उन्हें अपना नहीं जानती... तभी सहसा विचार आया, जिस बाबा के वचनमात्र ने संसार को असारता समझा दी, और जिस आया के दर्शन मात्र से कामिनी कंचन का मोह छूट गया, उनके साथ निरंतर रहने वाला यह साहब कितना बड़ा परमहंस होगा! साक्षात्‌ बुद्द! अस्कमात आदर से फूल कर मैं सोफे पर और भी सिमट आया और साहब के उपदेश को दत्तचित हो कर भंते की भाँति सुनने लगा। शीर्ष पर जाएँ 33




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