अंगद का पाँव | ANGAD KE PAON

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श्री लाल शुक्ल - SHRI LAL SHUKL

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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86/11/2016 कमाल हासिल है! सन बर्स्ट, पिंक पर्ल, लेडी हैलिंग्टन, ब्लैक प्रिंस, वाह, कमाल हासिल है! और अपने यहाँ? यहाँ तो जनाब वही पुराना टुइयाँ गुलाब लीजिए और खुशबू का नगाड़ा बजाइए।' बात यहीं पर थी कि इस बार गार्ड ने सीटी दी। बहस थम गई। पर कुछ देर गाड़ी में कोई हरकत नहीं हुई | इसलिए वे दूसरे महाशय भी भीड़ को फाड़ कर सामने आ गए। अकड़ कर बोले, 'हाँ साहब, जरा फिर से तो चालू कीजिए वही पहले का दिमाग वाला मजमून। मेरा तो भई, दिमाग हिंदुस्तानी ही है, पर आइए, आपके दिमाग को भी देख लें।' तब मित्र महोदय बड़े जोर से हँसे और बोले, 'हातिम भाई और सक्सेना साहब में यह हमेशा ही चला करता है। याद रहेंगे, 'साहब, ये झगड़े भी याद रहेंगे।' इस तरह यह बात भी खत्म हुई, झगड़े को मजबूरन मैदान छोड़ना पड़ा। उधर सिग्नल गिरा हुआ था। इंजिन फिर से 'सी-सी' करने लगा था। पर गाड़ी अंगद के पाँव-मी अपनी जगह टिकी थी। भीड़ के पिछले हिस्से में दर्शन-शास्त्र के एक प्रोफेसर धीरे-धीरे किसी मित्र को समझा रहे थे, 'जनाब, जिंदगी में तीन बटे चार तो दबाव है, कोएशन को बोलबाला है, बाकी एक बटे चार अपनी तबीयत की जिंदगी है। देखिए न, मेरा काम तो एक तख्त से चल जाता है, फिर भी दूसरों के लिए ड्राइंग-रूम में सोफे डालने पड़ते हैं। तन ढाँकने को एक धोती बहुत काफी है, पर देखिए, बाहर जाने के लिए यह सूट पहनना पड़ता है। यही कोएरशन है। यही जिंदगी है। स्वाद खराब होने पर भी दूध छोड़ कर कॉफी पीता हूँ जासूसी उपन्यास पढ़ने का मन करता है पर कांट और हीगेल पढ़ता हूँ, और जनाब गठिया का मरीज हूँ, पर मित्रों के लिए स्टेशन आ कर घंटों खड़ा रहता हूँ।' वे और उनके श्रोता - दोनों रहस्यपूर्ण ढंग से हँसने लगे और फिर मुझे अपने नजदीक खड़ा पा कर जोर से खुल कर हँसने लगे ताकि मुझे उनकी निश्छलता पर संदेह न हो सके। गाड़ी फिर भी नहीं चली। अब भीड़ तितर-बितर होने लगी थी और मित्र के मुँह पर एक ऐसी दयनीय मुस्कान आ गई थी जो अपने लड़कों से झूठ बोलते समय, अपनी बीवी से चुरा कर सिनेमा देखते समय या वोट माँगने में भविष्य के वादे करते समय हमारे मुँह पर आ जाती होगी। लगता था कि वे मुस्कुराना तो चाहते हैं पर किसी से आँख नहीं मिल्राना चाहते। तभी अचानक गार्ड ने सीटी दी। झंडी हिलाई। इंजिन का भोंपू बजा और गाड़ी चलने को हई। लोगों ने मित्र से उत्साहपर्वक हाथ मिल्राए। फिर मित्र ही डिब्बे में पहँच कर लोगों से हाथ मिलाने लगे। कुछ लोग रूमाल हिलाने लगे। मैं इसी दृश्य के लिए बैचैन हो रहा था। मैंने भी रूमाल निकालना चाहा, पर रूमाल सदा की भाँति घर पर ही छट गया था। मैं हाथ हिलाने लगा। एक साहब वजन लेनेवाली मशीन पर बड़ी देर से अपना वजन ले रहे थे और दूसरों का वजन लेना देख रहे थे। गार्ड की सीटी सुनते ही वे दौड़ कर आए और भीड़ को चीरते हुए मित्र तक पहुँचे | गाड़ी के चलते-चलते उन्होंने उत्साह से हाथ मिलाया। फिर गाड़ी को निश्चित रूप से चलती हुई पा कर हसरत से साथ बोले, 'काश, कि यह गाड़ी यहीं रह जाती।' शीर्ष पर जाएँ




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