आनंदमठ | ANANDMATH

ANANDMATH by पुस्तक समूह - Pustak Samuhबंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय - BANKIM CHANDRA CHATTOPAADHYAY

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बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय - BANKIM CHANDRA CHATTOPAADHYAY

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लेकिन ब्रत की सफलता तक उनका मुखदर्शन नही मिलेगा।”' महेद्र-““तब मै यह ब्रत ग्रहण न करूंगा।! सबेरा हो गया है । वह जनहीन कानन अब तक अंधकारमय और शब्दहीन था। अब आलोकमय प्रात: काल मे आनंदमय कानन के 'आनंद-मठ' सत्यानंद स्वामी मृगचर्म पर बैठे हुए संध्या कर रहे है। पास मे भी जीवानंद बैठे है । ऐसे ही समय महेद्र को साथ में लिए हुए स्वामी भवानंद वहां उपस्थित हुए। ब्रह्मचारी चुपचाप संध्या मे तल्‍लीन रहे, किसी को कुछ बोलने का साहस न हुआ। इसके बाद संध्या समाप्त हो जाने पर भवानंद और जीवानंद दोनो ने उठकर उनके चरणो मे प्रणाम किया, पदधूलि ग्रहण करने के बाद दोनों बैठ गए। सत्यानंद इसी समय भवानंद को इशारे से बाहर बुला ले गए। हम नही जानते कि उन लोगो मे क्‍या बाते हुई। कुछ देर बाद उन दोनों के मंदिर मे लौट आने पर मंद-मंद मुसकाते हुए ब्रह्मचारी ने महेद्र से कहा- “बेटा! मै तुम्हारे दु:ख से बहुत दु:खी हूं । केवल उन्हीं दीनबंधु प्रभु की ही कृपा से कल रात तुम्हारी स्त्री और कन्या को किसी तरह बचा सका।'” यह उन्ही ब्रह्मचारी ने कल्याणी की रक्षा का सारा वृत्तांत सुना दिया। इसके बाद उन्होंने कहा-'“चलो वे लोग जहां है वही तुम्हे ले चले !”! यह कहकर ब्रह्मचारी आगे-आगे और महेद्र पीछे देवालय के अंदर घुसे । प्रवेश कर महेद्र ने देखा- बड़ा ही लंबा चौड़ा और ऊंचा कमरा है। इस अरुणोदय काल मे जबकि बाहर का जंगल सूर्य के प्रकाश मे हीरों के समान चमक रहा है, उस समय भी इस कमरे मे प्राय: अंधकार है । घर के अंदर कया है- पहले तो महेद्र यह देख न सके, किंतु कुछ देर बाद देखते-देखते उन्हे दिखाई दिया कि एक विराट चतुर्भुज मूर्ति है, शंख-चक- गदा-पद्यधारी, कौस्तुभमणि हृदय पर धारण किए, सामने घूमता सुदर्शनचक लिए स्थापित है । मधुकैटभ जैसी दो विशाल छिल्नमस्तक मूर्तियां खून से लथपथ सी चित्रित सामने पड़ी है। बाएं लक्ष्मी आलुलायित- कुंतला शतदल-मालामण्डिता, भयत्रस्त की तरह खड़ी है । दाहिने सरस्वती पुस्तक, वीणा और मूर्तिमयी राग- रागिनी आदि से घिरी हुई स्तवन कर रही है । विष्णु की गोद मे एक मोहिनी मूर्ति-लक्ष्मी और सरस्वती से अधिक सुंदरी, उनसे भी अधिक ऐश्वर्यमयी- अंकित है । गंधर्व, किन्नर, यक्ष, राक्षषगण उनकी पूजा कर रहे है । ब्रह्मचारी ने अतीव गंभीर, अतीव मधुर स्वर मे महेद्र से पूछा-'“सब कुछ देख रहे हो?! महेद्र ने उत्तर दिया-''देख रहा हूं '' ब्रह्मचारी-' विष्णु की गोद मे कौन है, देखते हो? '' महेद्र-'' देखा, कौन है वह? '' ब्रह्मचारी -' मां! महेद्र “यह मां कौन है?! ब्रह्मचारी ने उत्तर दिया “हम जिनकी संतान है। ”' महेद्र “कौन है वह?! ब्रह्मचारी “समय पर पहचान जाओगे | बोलो, वंदे मातरम्‌! अब चलो, आगे चलो !”' ब्रह्मचारी अब महेद्र को एक दूसरे कमरे मे ले गए। वहां जाकर महेंद्र ने देखा- एक अद्भुत शोभा-संपन्न, सर्वाभरणभूषित जगद्धात्री की मूर्ति विराजमान है । महेद्र ने पूछा-'“यह कौन है ?'! ब्रह्मचारी-' मां, जो वहां थी।'' महेद्र-“यह कौन है ?'' ब्रह्मचारी -'' इन्होने यह हाथी, सिंह आदि वन्य पशुओ को पैरो से रौदकर उनके आवास-स्थान पर अपना




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