मनकू चांदनी चौक में | MANKU CHANDNI CHOWK MEIN
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
842 KB
कुल पष्ठ :
27
श्रेणी :
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मुकुल प्रियदर्शनी - MUKUL PRIYDARSHANI
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)निर्माण सन् 1879 में हुआ था | इसको एजटंन रोड भी कहा जाता था। ये सड़क
आगे जाकर चावड़ी बाज़ार में मिल जाती है। शुरू में इस सड़क को अजमेरी
गेट तक ले जाने की योजना थी लेकिन घरों को गिराकर सड़क बनाए जाने से लोग
काफ़ी असंतुष्ट थे, इसलिए चावड़ी बाजार में ही सडक खत्म कर दी गई। इस पर
शुरू में कपड़े की ओर आगे जाकर किताबों की दुकानें हैं। घंटाघर चौक के दाईं
ओर टाउन हॉल की भव्य इमारत है। 1857 की आज़ादी की लड़ाई के बाद अंग्रेज़ों
ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया तो शहर चलाने के लिए उन्हें दफ़्तर की ज़रूरत
पड़ी । इसी ज़रूरत को पूरा करने के लिए उन्होंने 1866 में टाउन हॉल बनवाया |
टाउन हॉल के उत्तर में यानी पीछे एक बाग था जिसमें चबूतरे पर एक पत्थर का
हाथी था। ये हाथी सचमुच के हाथी जितना बड़ा था। अगर तुम इस हाथी को
देखना चाहती हो तो लालक़िले के दिल्ली दरवाज़े पर चलेंगे। ये हाथी अब वहाँ
खड़ा हैं । टाउन हॉल के बाग में उस ह/थी की जगह अब एक फ़ब्वारा है।
टाउन हॉल के सामने सड़क के बीचोंबीच एक घंटाधर हुआ करता था जिसे
लॉड नॉर्थ ब्रुक ने 1868 में बनवाया था। बाद में इसका कुछ हिस्सा टूट गया था
जिससे कई लोग मरे और जख्मी हुए । इसलिए इसे ख़तरनाक मानकर गिरा दिया
गया | घंटाधर के दाई ओर महारानी विक्टोरिया की मूत्ति थी। यहीं पर 30
माचे, 1919 को अंग्रेज़ों ने स्वामी श्रद्धानन्द को गोलियों से छेलनी कर दिया । उसी
बलिदान की यादगार में महारानी विक्टोरिया की मूरति को हटाकर स्वामी:
श्रद्धानन्द की मूर्ति यहाँ लगा दी गई ।
जब चाँदती चौक बसा तो घंटाघर की जगह पर एक होज हुआ करता था ।
इस हौज़ में पानी नहर-सआदत-खाँ से आता था | चाँदनी रातों में चाँद की परछाई
होज़ के पानी में पड़ती थी और सारा माहौल दृधिया रोशनी से नहा उठता था।
तभी से शहर का ये हिस्सा चाँदती चौक कहलाने लगा। बाद में धीरे-धीरे लाल-
क़िले से लेकर फ़तेहपुरी तक के सारे इलाक़े का नाम चाँदनी चौक हो गया ।
द होज़ के दाएँ और बाएं बारीक़ नक्काशी वाले दो बड़े-बड़े द्वरवाजे हुआ
करते थे। बायाँ दरवाजा शहर के गली-कूचों में खुलता था और दायाँ बेगम के
बाग़ में । बेगम का बाग जहाँआरा उफ़ मलका बेगम ने सन् 1650 में बनवाया था ।
मनक्, तुम अंदाजा लगा सकती हो ये बगीचा कितना बड़ा था ? पूर्व में लाजपत राय
बाज़ार से शुरू होकर पश्चिम में फ़तेहपुरी तक और उत्तर में श्रद्धानन्द मार्ग तक ।
पानी उस समथ फ़तेहपूरी मस्जिद वाली सड़क, रेलवे स्टेशन वाली सड़क और डॉ ०
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