पृथ्वी ग्रह-एक झरोखा | PRITHVI GRAH EK JHAROKHA

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छ सूर्य ते तीसरा ग्रह-प्रथ्वी (67 'ह्ण प द्वारा एक-दूसरे को आकर्षित करते थे और आपस में मिलकर विशाल पिण्डों का निर्माण भी करते थे। इस प्रकार लगातार टकराहट और गुरुत्वीय प्रभाव के कारण ये पिण्ड शनैः-शनैः आज हमें दिखाई देने वाले ग्रहों में बदल गए। सूर्य के समीप चट्टानी धातुएं और अन्य भारी तत्वों वाले धूल के कणों ने सूर्य से तीसरा ग्रह यानी हमारी पृथ्वी के अलावा बुध से लेकर मंगल ग्रह तक के पार्थिव-ग्रहों का निर्माण किया | सौरमंडल के कम तापमान वाले बाहरी किनारों के समीप बर्फ के टुकड़ों को समाहित रखने वाले पानी और अमोनिया एवं मिथैन जैसी जमी हुई गैसों का निर्माण हुआ वैज्ञानिकों के अनुसार इस प्रक्रिया को पूर्ण होने में लाखों वर्षों का समय लगा होगा। वर्तमान धारणा के अनुसार पृथ्वी और चांद सहित आंतरिक ग्रहों का निर्माण तारकीय बादल के निपातित होने के करीब 10 करोड़ वर्षों के बाद संभव हुआ होगा। इस प्रकार पृथ्वी के निर्माण के आधुनिक सिद्धांत के अनुसार पृथ्वी का जन्म 4.5 अरब वर्ष पहले या दूसरे शब्दों में कहें तो सूर्य के जन्म के 10 करोड़ वर्ष बाद हुआ था। आरंभिक पृथ्वी आज हम जिस पृथ्वी को देखते हैं उसकी तुलना में आरंभिक पृथ्वी बहुत अलग थी। तब न महासागर थे, न ही वायुमंडल में ऑक्सीजन थी और उस समय पृथ्वी पर कोई जीवित प्राणी उपस्थित नहीं था। सौरमंडल के निर्माण के समय से ही पृथ्वी पर आकाश से लगातार बरसने वाली चट्टानें और अन्य पदार्थ ही उपस्थित थे। पदार्थों की इस बमबारी में पृथ्वी के रेडियोसक्रिय क्षय से उत्पन्न ताप और संकुचन के दबाव से पृथ्वी बहुत गर्म और पूर्णतः पिघली अवस्था में थी। आरंभिक समय में जहां भारी पदार्थ पृथ्वी के केन्द्र की ओर जा रहे थे तो दूसरी तरफ हल्के पदार्थ ऊपर सतह पर आ रहे थे। इस प्रकार प्रथ्वी की विभिन्‍न पर्तों का निर्माण हुआ। पृथ्वी का आरंभिक वायुमंडल सौर निहारीका की गैसों विशेषकर हाइड्रोजन और हीलियम जैसी हल्की गैसों से बना था। लेकिन सौर हवाओं और प्रथ्वी की अपनी गर्मी के कारण शायद तब वायुमंडल स्थिर नहीं रह पाया था।




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