असंतोष के दिन | ASANTOSH KE DIN

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राही मासूम रज़ा - Raahi Masum Rajaa

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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“मराठी 1” साजिद गतगना गया---/आई हेट मराठी ।”” बह क्यो भई ।” “विकाज आफ यह कि मराठो ने तो हाई स्कूल म॑ मेरी पुश्शिशन खराब की ।! * औनली मराठीज ऐपियर आन द मेरिट लिस्ट ।” फात्मा ने फसला सुना दिया। 'ट्राःसलेट, अब्बास ने कहा | “ सिफ मराठिया के नम्स ओह हैल नाम मुझसे नहीं मालूम कि मेरिट लिस्ट का हिंदी उर्दू मं क्‍या कहत हैं । मुझे भी नही मालूम !” अब्बास ने कहा । फात्मा खिलखिलाकर हँस पडी और उसके गले मे बाँहे डालकर ध्यार करन के बाद बोली । मैं सांने जा रही हूँ।” “ए मज्जू !” सयदा ने फरियाद की । “खुदा के वास्ते यह 'मिली रिली' बाद करो, गोलमाल' लगा दो 1/ माज़िद मे सुना ही नही । वह्‌ वाक्मेन' पर उस्ताद अमीर अली खा का अहीर भैरव सुनन मे लग चुका था। कानों पर ईअर फान चढा हुआ था । खूद सयदा भी कालीन पर लेटकर 'सुपमा” मे छपी हुई तस्वीरें देखने संगी क्योकि देवनागरी लिपि वह जानती नही थी। ' यार एक हो जाये !” एकदम स अब्बास का प्यास लग गयी । “कोई जरूरत नही 1 सयदा न डाटा। 'कफ्यू यू ही लगा हुआ है ।' वह हँस पडा। “कपयू को चाय से क्या लेना देना भई !” दरवाज से पीठ लगाये जया भादुडी और अशोक कुमार के सीन पर बाकायदा रोता हुआ राम माहन उठ खडा हुआ। अयास देख सकता था कि राम मोहन दिल मार के चाय बनाने उठ रहा है कि वह अभी जया भाठुडी और अशोक कुमार के सीन पर और असन्तोय वे दिन / 17




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