मैं नास्तिक क्यों हूँ ? | MAIN NASTIK KYOON HOON?
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
269 KB
कुल पष्ठ :
10
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक समूह - Pustak Samuh
No Information available about पुस्तक समूह - Pustak Samuh
भगत सिंह - BHAGAT SINGH
No Information available about भगत सिंह - BHAGAT SINGH
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)8/2/2016
मुझे स्वयं आश्चर्य हुआ कि मैं उस समय बहुत शांत रहा। न तो कोई सनसनी महसूस हुई, न ही जरा भी उत्तेजना
का अनुभव हुआ। मुझे पुलिस हिरासत में ले लिया गया था| अगले दिन मुझे रेलवे पुलिस हवालात में ले जाया
गया, जहाँ मुझे पूरा एक महीना काटना पड़ा। पुलिस अफसरों से कई दिनों की बातचीत के बाद मुझे ऐसा लगा कि
उन्हें मेरे काकोरी दल के संबंधों के बारे में तथा क्रांतिकारी आंदोलन से संबंधित मेरी गतिविधियों के बारे में कुछ
जानकारी है। उन्होंने मुझे बताया कि मैं लखनऊ में था जब वहाँ मुकदमा चल रहा था, कि मैंने उन्हें छुड़ाने की
किसी योजना पर बात की थी, कि उनकी सहमति पाने के बाद हमने कुछ बम प्राप्त किये थे, कि 1926 में दशहरा
के अवसर पर उन बमों में से एक परीक्षण के लिए भीड़ पर फेंका गया। उसके बाद मेरे भले के लिए उन्होंने मुझे
बताया कि यदि मैं क्रांतिकारी दल की गतिविधियों पर प्रकाश डालनेवाला एक वक्तव्य दे दूँ तो मुझे गिरफ्तार
नहीं किया जाएगा और इनाम दिया जाएगा। मैं इस प्रस्ताव पर हँसा। यह सब बेकार की बात थी। हम लोगों की
भाँति विचार रखनेवाले अपनी निर्दोष जनता पर बम नहीं फेंका करते। एक दिन सुबह सी.आई.डी. के वरिष्ठ
अधीक्षक श्री न््यूमन मेरे पास आए। लंबी-चौड़ी सहानुभूतिपूर्ण बातों के बाद उन्होंने मुझे, अपनी समझ में, यह
अत्यंत दुखद समाचार दिया कि यदि मैंने उनके द्वारा मांगा गया वक्तव्य नहीं दिया तो वे मुझ पर काकोरी केस
से संबंधित विद्रोह छेड़ने के षडयंत्र तथा दशहरा बम उपद्रव में क्रूर हत्याओं के लिए मुकदमा चलाने पर बाध्य
होंगे। और आगे उन्होंने मुझे यह भी बताया कि उनके पास मुझे सजा दिलाने व [फाँसी पर] लटकाने के लिए
उचित प्रमाण मौजूद हैं। उन दिनों मुझे यह विश्वास था, यद्यपि मैं बिल्कुल निर्दोष था, कि पुलिस यदि चाहे तो
ऐसा कर सकती है। उसी दिन से कुछ पुलिस अफसरों ने मुझे नियम से दोनों समय ईश्वर की स्तुति करने के लिए
फुसलाना शुरू कर दिया। पर अब मैं एक नास्तिक था। मैं स्वयं के लिए यह बात तय करना चाहता था कि क्या
शांति और आनंद के दिनों में ही मैं नास्तिक होने का दंभ भरता हूँ अथवा ऐसे कठिन समय में भी मैं उन सिद्धांतों
पर अडिग रह सकता हूँ। बहुत सोचने के बाद मैंने यह निश्चय किया कि किसी भी तरह ईश्वर पर विश्वास तथा
प्रार्थना मैं नहीं कर सकता। न ही मैंने एक क्षण के लिए भी अरदास की। यही असली परीक्षण था और इसमें मैं
सफल रहा। एक क्षण को भी अन्य बातों की कीमत पर अपनी गर्दन बचाने की मेरी इच्छा नहीं हुई | अब मैं एक
पक्का नास्तिक था और तब से त्रगातार हूँ। इस परीक्षण पर खरा उतरना आसान काम न था। “विश्वास! कष्टों
को हल्का कर देता है, यहाँ तक कि उन्हें सुखकर बना सकता है। ईश्वर से मनुष्य को अत्यधिक सांत्वना देनेवाला
एक आधार मिल सकता है। 'उसके” बिना मनुष्य को स्वयं अपने ऊपर निर्भर होना पड़ता है। तूफान और
झंझावात के बीच अपने पांवों पर खड़ा रहना कोई बच्चों का खेल नहीं है। परीक्षा की इन घडियों में अहंकार, यदि
है, तो भाप बन कर उड़ जाता है और मनुष्य आम विश्वास को ठुकराने का साहस नहीं कर पाता। पर यदि करता
है, तो इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि उसके पास सिर्फ अहंकार नहीं, वरन कोई अन्य शक्ति है। आज बिलकुल
वैसी ही स्थिति है। पहले ही अच्छी तरह पता है कि [मुकदमें का] क्या फैसला होगा। एक सप्ताह में ही फैसला
सुना दिया जाएगा। मैं अपना जीवन एक ध्येय के लिए कुर्बान करने जा रहा हूँ, इस विचार के अतिरिक्त और क्या
सांत्वना हो सकती है? ईश्वर में विश्वास रखनेवाला हिंदू पुनर्जन्म पर एक राजा होने की आशा कर सकता है, एक
मुसलमान या ईसाई स्वर्ग में व्याप्त समृद्धि के आनंद की तथा अपने कष्टों और बलिदानों के लिए पुरस्कार की
कल्पना कर सकता है। किंतु मैं किस बात की आशा करूँ? मैं जानता हूँ कि जिस क्षण रस्सी का फंदा मेरी गर्दन
पर त्रगेगा और मेरे पैरों के नीचे से तख्ता हटेगा, वही पूर्ण विराम होगा - वही अंतिम क्षण होगा। मैं, या संक्षेप में
आध्यात्मिक शब्दावली की व्याख्या के अनुसार, मेरी आत्मा, सब वहीं समाप्त हो जाएगी। आगे कुछ भी नहीं
रहेगा। एक छोटी सी जूझती हुई जिंदगी, जिसकी कोई ऐसी गौरवशाली परिणति नहीं है, अपने में स्वयं एक
पुरस्कार होगी, यदि मुझमें उसे इस इष्टि से देखने का साहस हो। यही सब कुछ है। बिना किसी स्वार्थ के, यहाँ या
4/10
User Reviews
No Reviews | Add Yours...