तुलसी का ब्याह | TULSI KA BYAH
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
38
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
दुर्गा भानावत - DURGA BHANAWAT
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पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)देखने लगी। उसने सोचा; .“उस तरफ जाकर देखू। पर यदि रास्ता भूल गई तो? जंगल में मुझको कौन
रास्ता दिखाएगा।”
ऐसा विचार मन में आने के कारण वह वहीं बैठी रही। दोपहर बीत गई। शाम का समय आ
गया। धीरे-धीरे जंगल में अंधेरा छाने लगा | चमगादड़ अपने पंख फड़फड़ाने लगे । तब तुलसी को मालूम
पड़ने लगा कि पिता ने मुँझे एकदम यहां छोड़कर फंसा दिया है, घर के बाहर निकाल दिया है.और
नगदी प्रैसा (हुंडी) देने की चिन्ता मिटाई है।
वह रोने लगी। “रात जंगल में कैसे बिताऊं ? बाघ खा जाएगा मुझको । लोमड़ी फाड़ डालेगी।
बन्दर, भूत-प्रेत नोचेंगे । डाकिन खींचेगी तो क्या करूंगी? बाप ने छोड़ दिया है। हवा झकझोरेगी। पानी
भिगोएगा। मैं अब अपनी फरियाद किसके पास ले जाऊं ?”
तुलसी उठ गई। रोते-कलपते, गिरते-पड़ते जो रास्ता दिखाई देता था, वह उसी रास्ते पर दौड़ने
लगी। उसको लगने लगा जैसे सारा जंगल निगलने लगा है। पेड़ की डालियां उसे पकड़ रही हैं। कांटे
उसके बाल नोचने लगे हैं। पत्थर ठोकर मार रहे हैं।
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