स्पर्श | SPARSHA

SPARSHA by जयवंत दलवी - Jayvant Dalaviपुस्तक समूह - Pustak Samuh

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जयवंत दलवी - Jayvant Dalavi

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पुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रुषों के भोजन कर लेने के बाद अनु और नानी खाने बैठी थी। “सबने खाई थी रोटियों ?” ( पहॉ १? “कोई कुछ बोला ? “हाँ, ये और ससुर जी बोले, अच्छी बनी हैं !” यह सुनकर, नानी के चेहरे पर, रौनक आ गई । अनु कुछ न बोली और खाते-खाते, नानी के हाथों की उंगलियाँ देखने लगी । उनपर छोटे से नाखून थे । टेढ़ी-मेढ़ी उंगलियाँ । नानी उन्हीं हाथों से भोजन कर रही थीं ।




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