अर्जुन | ARJUN

ARJUN by अरविन्द गुप्ता - Arvind Guptaमहाश्वेता देवी - Mahashveta Devi

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महाश्वेता देवी - Mahashveta Devi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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“कितने दिनों से यहाँ, हमारा पहरा दे रहा है ?” पीताम्बर ने कहा । धीरे-धीरे, उस पेड़ से जुड़ी घटनायें, उन लोगों को याद आने लगी । वे मुट्ठी भर लोग, जिन्हें सरकार और समाज उजाड़ता है, उपयोग करता है, फिर जेल भिजवा देता है सहसा समझ गये कि उस पेड़ की स्थिति भी उन्हीं की तरह है । “विशाल बाबू तो शहर जा रहे हैं | पैसे माँग लेता हूँ | “काटोगे पेड़ तुम ?” “पाँच आदमी काफी हैं । सौ रूपये माँगे हम ।”




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