सत्यदास | SATYADAS
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
41
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सुनार के यहाँ काम करते थे। मैंने ऐसी चीजें बहुत देखी हैं।
“और इससे तुम्हें बहुत फायदा हुआ है। इससे क्या तुम्हारी किस्मत जागी?
हम अभी तक सिफ यही कर सके कि एक कमरे से दो कमरों में पहुँच गए।
तुम्हारी किस्मत ने तुम्हें टीन तो दिया है परन्तु सोना नहीं - यहाँ तक कि
पीतल भी नहीं!“
मैं सिर्फ एक बात नहीं समझ पा रहा कि एक भिखारी को सोने की मोहर
मिली कैसे?”
“शायद उसे विरासत में मिली हो |“
“पर उसका तो इस दुनिया में कोई है ही नहीं |
“कहीं ऐसा न हो कि बह चोर हो।
रघुनाथ ने अपना सिर हिलाया | “वह काफी ईमानदार लगता है। और फिर वह
हमारा मेहमान है। हमें अपने मेहमानों के बारे में गलत नहीं सोचना चाहिए ।'
“ठीक है लेकिन तुम जाकर देखते क्यों नहीं कि वह क्या कर रहा हैं?”
रामायण को एक ओर खिसकाकर रघुनाथ दुकान के अन्दर चला गया।
उसने देखा सत्यदास उठकर बैठ गया था और अपने माथे और गले से पसीना
पोंछ रहा था। वह मुस्कराया |
“मेरा बुखार उतर गया, बाबू।
“ठीक है, पर आज रात रूक जाओ, रघुनाथ ने कहा। उसने दुकान की
खड़खड़ी की ओर इशारा किया, “क्या मैं इसे पूरा बंद कर दूँ? हमें पीछे का
दरवाज़ा बन्द करना पड़ेगा| ठीक है?“ द
अचानक सत्यदास ने कहना शुरू किया, “तुम बहुत दयालु हो, बाबू | अच्छे
आदमी हो। कोई भी किसी अजनबी को अपने घर नहीं घुसने देता। तुमने मुझे
आसरा दिया। ऊपर भगवान सब कुछ देखता है। उसकी नज़र से कुछ नहीं
छुपा - क्यों ठीक है न?”
सत्वदास , 13
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