बचपन से पलायन | BACHPAN SE PALAYAN
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
122
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
जॉन होल्ट -JOHN HOLT
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पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बचपन से पलायन
एरीस सुझाते हैं (और ऐसा करने वाले वे अकेले भी नहीं है) कि
घर” की हमारी परिकल्पना, जो माता-पिता व बच्चों के एक
अन्तरंग समूह पर आधारित है, वास्तव में ऐतिहासिक रूप से बहुत
पुरानी नहीं है। न ही उसका भौगोलिक विस्तार सर्वव्यापी है।
एक घर में रहने वाला परिवार क्रमशः “एकल परिवार” का रूप
लेने लगा, जिसमें केवल माता-पिता व बच्चे हों। ये परिवार पुराने
समय. के उत्तरी यूरोप व अन्य क्षेत्रों में प्रचलित व्यापक सामुदायिक
जीवन से कटकर अपनी एकान्तता में जीने लगे। इसी समय सेवकों
की एक भिन्न व अधीनस्थ श्रेणी बनी। ये परिवार में रहने वाले
.. सदस्यों की सुख-सुविधा के लिए काम करने लगें। जबकि ये ही
लोग पहले विभिन्न उत्पादकों के पास प्रशिक्षुओं के रूप में काम
करते थे और बाज़ार के लिए वस्तुओं का निर्माण करते थे। अब
मकान (हाउस) बदलकर घर (होम) का रूप लेने लगा था। घर शेष
दुनिया से कटे हुए पारिवारिक जीवन और आराम का गढ़ था।
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इतिहास में बाल्यावस्था
22 2080080 07887 हम एक
बच्चे वयस्कों के जीवन में अंशतः तो इसलिए होते थे क्योंकि उन्हें उससे बाहर
रखने का कोई उपाय ही नहीं था। गरीबों के पास आज की तरह तब भी इतना
कम स्थान था कि बच्चों को जीवन की सभी वास्तविकताओं को देखना-जानना
पड़ता था। सम्पन्न से सम्पन्न परिवारों में भी उस एकान्तता का पूर्ण अभाव
था जिसे हम आज इतना ज़रूरी मानते हैं। बड़े घरों में, महलनुमा किलों में
भी अलग-थलग निजी कमरे नहीं थे जो एक साझे हॉल में खुलते हों। कमरे
एक कतार में और एक दूसरे से जुड़े हुए होते थे। अर्थात् अगर एक कमरे से
दूर किसी दूसरे कमरे में जाना हो तो बीच में आने वाले शेष सभी कमरों से
गुज़रना पड़ता था। हरेक व्यक्ति वह सब देखता था जो दूसरे कर रहे हों, न
देखने का कोई उपाय ही नहीं था। अतः जीवन के स्वाभाविक कार्यों के बारे
में वे वर्जनाएँ भी नहीं थीं, जो बाद में आईं।
वास्तव में मातृत्व भी कोई सार्वकालिक और सार्वभौमिक सम्बन्ध नहीं है और
न ही इसकी ज़रूरत है, जैसा आज हम उसे मान बैठे हैं। सुश्री जेनवे लिखती
हम याद रखें कि अतीत में माताएँ कठोर परिश्रम करती थीं और
सन् 1700 के पूर्व घर, चूल्हा और बच्चे के मिथक के उदाहरण बिरले ही मिलते
हैं। अर्थात उस समय के घर आज की तरह के न थे, जिनके लिए कहा जाता
है कि महिलाओं का स्थान एक घर हीं है
तो अगर पहले महिलाएँ घर में नहीं होती थीं, तो भला कहाँ थीं?
अगर परिवार-केन्द्रित जीवन मध्यमवर्ग का आविष्कार है तो पहले
ज़माने में लोग कैसे रहते थे? ...वे दो प्रकार के आवासों में से किसी
एक में रहते थे। बड़ा मकान या झोपडी। ...बड़े मकानों में शिष्ट _
वर्ग रहता था, पर अकेले अपने परिवार के साथ नहीं, क्योंकि बड़ा
मकान केवल रहने का स्थान नहीं था। वे या तो गढ़ थे या वित्तीय
गतिविधियों के केन्द्र, या फिर दोनों थे। बड़े मकान के दरवाज़ों के
अन्दर रहने वाला परिवार नौकर-चाकरों, प्रशिक्षुओं, हर स्तर के
कर्मचारियों, कारिन्दों, प्रबन्धकों, क्लर्क, पादरी और असंख्य मेहमानों
व निठल्लों से घिरा रहता था। लगभग बीस प्रतिशत आबादी ऐसे
आवासों में निवास करती थी जहाँ मालिक व सेवक साथ रहते थे |
उनके कमरे... ऐसे थे जहाँ कोई, कभी अकेला नहीं होता था।
शेष आबादी शहरों या गाँवों में छोटी-छोटी झोपड़ियों में रहती थी ।
सीधे साफ शब्दों में ये उस समय की कच्ची बस्तियों थीं। [पृष्ठ
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अपना पूरा समय परिवारों के साथ ही नहीं बिताती थीं। शताब्दी
दर शताब्दी करोड़ों बच्चे ऐसी महिलाओं की देखरेख में पले-बढ़े हैं
जो उनकी नैसर्गिक माताएँ नहीं थीं। मेरा आशय केवल कबीलों के
बच्चों से नहीं बल्कि उन सभी बच्चों से है जिन्हें धाय मां, नानियों,
दादियों या बड़ी बहनों के पास और समझदार होने पर स्कूलों
(या स्कूलों के पहले बड़े घरों) में मेज दिया जाता था। समझदारी
की उम्र दुनियाभर में लगभग समान रूप से सात वर्ष मानी जाती
रही थी। हमारे अपने सांस्कृतिक अतीत में (अर्थात् मध्ययुगीन
यूरोप में) एकमात्र औपचारिक स्कूल वे थे जो लड़कों को गिरजे के
लिए तैयार करते थे। शेष सभी लोग - सामन्त, सामान्य जन और
दास - काम करते हुए सीखते थे। सीखने की यह प्रक्रिया वयस्क
दुनिया में एक प्रकार के सामान्य प्रशिक्षु काल के दौरान होती थी।
वे सीखने का काम ज़्यादातर घर से दूर रहकर करते थे। औपचारिक
शिक्षा को जब जन-साधारण के लिए उपयोगी माना जाने लगा,
तब भी केवल उच्च वर्ग के लड़कों को स्कूल भेजा जाता था।
लड़कियाँ और निम्न वर्ग के लड़के पुरानी रीति से ही सीखते थे।
केवल सम्पन्न और महान परिवारों की बेटियाँ ही निजी शिक्षिकाओं
(गवर्नेंस) के पास, घरों में रखी जाती थीं। बाकी बच्चे कुछ समय
अपने माता-पिता के साथ काम करते हुए सीखते थे। पर अधिकतर
ही
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