अवसर | AVSAR

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नरेन्द्र कोहली - Narendra kohli

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पुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रु अवसर ने मतक के परिवार को क्षतिपूर्ति का कोई सुभाव नही रखा | यह अनुचित है। सनिक विजय के परिवार को क्षतिपू््ति के रूप में उसके वतन का दुगुना भत्ता प्रति मास दिया जाए।” महामत्री ने आश्चय से सम्राट को दखा। आय पुष्कल ने भी उसी मुद्रा मे सम्राट को देखा क्तु वे महामत्री के समान मौत नही रहे ““याय-समिति के सचिव के रूप म मेरा यह कतव्य है कि मैं सम्राट को स्मरण दिलाऊ कि ऐसी स्थितिया म -यक्ति क॑ वेतन का आधा भत्ता देने का विधान है । किंतु 'याय-समिति के सचिव को कौन स्मरण दिलाएगा” सम्राट का स्वर अतिरिक्त रूप से तिवत था कि विधान म सम्राट के अपने कुछ विशेषाधिकार भी है। सम्राट का भत्ते की राशि को घटा बढां सकने का पूण जधिकार है। * आय पुष्वल के मन मे अनेक आपत्तिया थी---सम्राट को विद्येपाधिकार तो हैं, कितु वे विश्वप परिस्थितियों के लिए है। इस घटना म एसी कोई विशेष बात नही है। कितु सम्राट वी भगिमा ऐसी नही थी कि आय पुप्कल या कोई अय परापद बुछ कहने को प्रोत्साहित होता । सम्राट अप्रस न है यह साफ्-साफ दीख रहा था कितु क्या ? किससे ? क्या वे स्वय पुप्कल से अप्रस-न है २ आय पुष्कल न अपनी बात कठ म ही रोक ली। सभा में फिर मौन छा गया । सम्राट के इस प्रकार खीमने वे अधिक अवसर नही आत थे, और जब आत थ उनका टल जाना ही उचित था। किसी का साहस नही था कि सम्राट की ओर देखे । सबकी दृष्टि भूमि पर गडी हुई थी ऐसी स्थिति से परिषद को राज-भुरु तथा अ.य ऋषि ही उबार सकते थे। उन पर सम्राट का अनुशासन अनिवायत लागू नही होता था। क्तु सामायत सम्राठ द्वारा याचता होने पर ही गुरु तथा अ य ऋषि अपना अभिमत देते थ॑ अथवा बहुत असाधारण स्थिति होने पर ही वे लोग संद्धातिक हस्तक्षेप करते थे--कितु आज को बात तो सामा य-सी वैधानिक बात थी।




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