सुल्तान का ज्योतिषी | SULTAN KA JYOTISHI

Book Image : सुल्तान का ज्योतिषी  - SULTAN KA JYOTISHI

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

पुस्तक समूह - Pustak Samuh

No Information available about पुस्तक समूह - Pustak Samuh

Add Infomation AboutPustak Samuh

बारबरा - BARBARA

No Information available about बारबरा - BARBARA

Add Infomation AboutBARBARA

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
“देखो,” बीबी ने आंह भरते हुए कहा, “अब तक मैं खुद को भाग्यवान समझ रही थी. पर आज सुबह मुझे मालूम पड़ा कि सुल्तान के प्रमुख ज्योतिषी का घर सुल्तान के महत्र के अन्दर ही है. प्रमुख ज्योतिषी की पत्नी मुझसे कहीं बेहतर और महंगे कपड़े पहनती है. उसके हीरे-मोतियों के सामने मेरे जेवर बिल्कुल फीके हैं. में अब अपनी ज़िन्दगी से बिल्कुल संतुष्ट नहीं हूँ. तुम सुल्तान के प्रमुख ज्योतिषी बनो. तभी मुझे ख़ुशी मिलेगी.” “प्रिय पत्नी,” तुम ईर्ष्या की आग में क्‍यों जत्र रही हो लकड़हारे ने बीबी को समझाने की कोशिश की. “हम मेहनतकश लोग हैं. इस तरह की हरकतें हमें शोभा नहीं देती हैं. हमारे पास जो कुछ भी है तुम उसी में खुश रहो.” आप एक ऊँट को कूदकर, खाई पार करा सकते हैं, पर किसी बेवकूफ इंसान को तर्क नहीं समझा सकते हैं. ल्कड़हारे की बीबी की अब सिर्फ एक ही रट थी -सुल्तान के महत्र के अन्दर रहने की. “जाओ, उसने पति को आदेश दिया. तुम्हें इस घर में तब तक खाना नहीं मिलेगा जब तक तुम सुल्तान के प्रमुख ज्योतिषी नहीं बनते हो बिचारे लकड़हारे ने अपने सिर को दोनों हाथों में थामा और सोचने लगा. वो एक समझदार आदमी था और उसे सिर के ऊपर छत की अपेक्षा अपनी ज़िन्दगी ज्यादा प्यारी थी. जिस घर में वो अभी रहते थे वो उनकी औकात से कहीं अच्छा था. पत्नी को भी समझना चाहिए था कि पति उसे इससे अच्छा घर उसे नहीं दे सकता था. लकड़हारा, ज्योतिषी की गलत भविष्यवाणी के ज़ोखिम से भी अवगत था. प्रमुख ज्योतिषी बनने की बात तो दूर रही, गरीब लकड़हारा अपने वर्तमान ओहदे से भी परेशान था और उससे मुक्ति चाहता था. और जब तक उसके दिल में डर समाया था तब तक कोई भी घर - झोपड़ी या महल, उसे सकून नहीं दे सकता था. तभी अचानक लकड़हारे के दिमाग में एक योजना आई जो एकदम सरल और सटीक थी. इसलिए उसने तुरंत उस पर अमल करने की ठानी. क्योंकि सुल्तान अपने ज्योतिषियों को बहुत काबिल मानता था इसलिए उस जैसा बेवकूफ अला उस ओहदे का कैसे हकदार हो सकता था? उसे लगा कि नए ज्योतिषी को बिल्कुल बेवकूफी से पेश आना चाहिए जिससे सुल्तान उसकी ज्योतिषी पर यकीन करना ही छोड़ दे. अपने ओहदे से मुक्त होने के बाद ही वो अल्लाह की बक्शी इस चमत्कारी ज़िन्दगी का लुत्फ़ उठा पायेगा. उस दिन उसने दोपहर तक इंतज़ार किया और जब सब लोगों ने अपना कामकाज ख़त्म किया फिर वो महल के बीच वाले मैदान में जाकर ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगा, “सुल्तान! सुल्तान!” क्‍या किसी ने सुल्तान को देखा है? जल्दी करो! जल्दी करो! हमें जल्दी से सुल्तान को बचाना है!”




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now