श्रेष्ठ हिंदी कहानियाँ (1980-1990) | SHRESTH HINDI KAHANIYAN 1980-1990

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खगेन्द्र ठाकुर -KHAGENDRA THAKUR

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पुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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16 श्रेष्ठ हिन्दी कहानियाँ (1980-1990) होज वाज पापा “असगर वज्ञाहत अस्पताल की यह ऊँची छत, सफेद दीवारों और लंबी खिड़कियों वाला कमरा कभी-कभी 'किचन' बन जाता है। ' आधे मरीज' यानी पीटर “चीफ कुक' बन जाते हैं और विस्तार से यह दिखाया और बताया जाता है कि प्रसिद्ध हंगेरियन खाना 'पलाचिंता कैसे पकाया जाता है। पीटर अंग्रेजी के चंद शब्द जानते हैं। में हंगेरियन के चंद शब्द जानता हूँ। लेकिन हम दोनों के हाथ, पैर, आँखें, नाक, कान हैं जिनसे इशारों की एक भाषा 'ईजाद' होती है और संवाद स्थापित ही नहीं होता दौड़ने लगता है। पीटर मुझे यह बताते हैं कि अंडे लिए, तोड़े, फेंटे, उसमें शकर मिलाई, मैदा मिलाया, एक घोल तैयार किया। 'फ्राईपैन' लिया, आग पर रखा, उसमें तेल डाला। तेल के गर्म हो जाने के बाद उसमें एक चमचे से घोल डाला। उसे फैलाया और पराठे जेसा कुछ तैयार किया। फिर उसे बिना चमचे की सहायता के ' फ्राईपैन' पर उछाया, पलटा, दूसरी तरफ से तला और निकाल लिया। पीटर ने मजाक में यह भी बताया था कि उनकी पत्नी जब 'पलाचिंता' बनाने के लिए मैदे का 'पराठा ' 'फ्राईपैन' को उछालकर पलटती हैं तो 'पराठा' अक्सर छत में जाकर चिपक जाता है। लेकिन पीटर “एक्सपर्ट ' हैं, उनसे ऐसी गलती नहीं होती। पीटर का पूरा नाम पीटर मतोक है। उनकी उम्र करीब छियालीस-सैंतालीस साल है। लेकिन देखने में कम ही लगते हैं। वे बुदापैश्त में नहीं रहते। हंगेरी के एक अन्य शहर पॉपा में रहते हैं और वहाँ के डाक्टरों ने इन्हें पेट की किसी बीमारी के कारण राजधानी के अस्पताल में भेजा है। यहाँ के डॉक्टर यह तय नहीं कर पाए हैं कि पीटर का वास्तव में ऑपरेशन किया जाना चाहिए या वे दवाओं से ही ठीक हो सकते हैं। होज वाज पापा 17 यानी पीटर के टेस्ट चल रहे हैं। कभी-कभी डॉक्टर उनके चेहरे और शरीर पर तारों का ऐसा जंगल उगा देते हैं कि पीटर बीमार लगने लगते हैं। लेकिन कभी-कभी तार हटा दिए जाते हैं तो पीटर मरीज ही नहीं लगते। यही वजह है कि में उन्हें आधे मरीज के नाम से याद रखता हूँ। पीटर “सर्वे” करने वाले किसी विभाग में काम करते हैं। उनकी एक लड़की है जिसकी शादी होने वाली है। एक लड़का है जो बारहवीं क्लास पास करने वाला है। पीटर की पत्नी एक दफ्तर में काम करती हैं। पीटर कुछ साल पहले किसी अरब देश में काम करते थे। ये सब जानकारियाँ पीटर ने मुझे खुद ही दी थीं। यानी अस्पताल में दाखिल होते ही उनकी मुझसे दोस्ती हो गई थी। पीटर मुझे सीधे- सीधे, दिलचस्प, बातूनी और 'प्रेमी' किस्म के जीव लगे थे। पीटर का नर्सों से अच्छा संवाद था। मेरे ख्याल से कम उग्र नर्सो को वे अच्छी तरह प्रभावित कर दिया करते थे। उन्हें मालूम था कि नर्सो के पास कब थोड़ा-बहुत समय होता है जैसे ग्यारह बजे के बाद और खाने से पहले या दो बजे के बाद और फिर शाम सात बजे के बाद वे किसी- न-किसी बहाने से किसी सुंदर नर्स को कमरे में बुला लाते थे और गप्पशप्प होने लगती थी। जाहिर है वे हंगेरियन में बातचीत करते थे। में इस बातचीत में अजीब विचित्र ढंग से भाग लेता था। यानी बात को समझे बिना पीटर और नर्सो की भाव- भंगिमाएँ देखकर मुझे यह तय करना पड़ता था कि अब मैं हँसूँ या मुस्कराऊँ या अफसोस जाहिर करूँ या “हद हो गई साहब' जेसा भाव चेहरे पर लाऊँ या 'ये तो कमाल हो गया' वाली शक्ल बनाऊँ? इस कोशिश में कभी-कभी नहीं अक्सर मुझसे गलती हो जाया करती थी और में खिसिया जाया करता था। लेकिन ऑपरेशन, तकलीफ, उदासी और एकांत के उस माहौल में नर्सों से बातचीत अच्छी लगती थी या उसकी मौजूदगी ही मजा देती थी। पीटर ने मेरे पास भारतीय संगीत के कैसेट देख लिए थे। अब वे कभी-कभी शाम सात-आठ बजे के बाद किसी नर्स को सितार, शहनाई या सरोद सुनाने बुला लाते थे। बाहर हल्की-हल्की बर्फ गिरती होती थी। कमरे के अंदर संगीत गूँजता था और कुछ समय के लिए पूरी दुनिया सुन्दर हो जाया करती थी। पीटर के अलावा कमरे में एक मरीज और थे। जो स्वयं डॉक्टर थे और “एपेण्डिसाइटिस ' का ऑपरेशन कराने आये थे। पीटर को जितना बोलने का शौक था इन्हें उतना ही खामोश रहने का शौक था। वे यानी इग्रे अंग्रेजी अधिक जानते थे। मेरे और पीटर के बीच जब कभी संवाद फँस या अड़ जाता था तो वे खींचकर गाड़ी बाहर निकालते थे। लेकिन आमतौर पर वे खामोश रहना पसंद करते थे। मैं कोई दस दिन पहले अस्पताल में भर्ती हुआ था। मेरा ऑपरेशन होना था।




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