पञ्च परमेश्वर | PANCH PARMESHWAR
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
12
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक समूह - Pustak Samuh
No Information available about पुस्तक समूह - Pustak Samuh
प्रेमचंद - Premchand
प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। प्रेमचंद की आरंभिक शिक्षा फ़ारसी में हुई। सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता तथा चौदह वर्ष की अवस्था में उनके पिता का देहान्त हो गया जिसके कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा। उनकी बचपन से ही पढ़ने में बहुत रुचि थी। १३ साल की उम्र में ही उन्होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्यासों से परिचय प्राप्त कर लिया। उनक
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अबला के दुखड़े को गोर से सुना हो ओर उसको सान््त्वना दी हो । चारों
ओर से घूम-घामकर बेचारी अलगू चोधरी के पास आयी। लाठी पटक
दी ओर दम लेकर बोली -- बेटा, तुम भी थोड़ी देर के लिए पंचायत में
चले आना। |
अलगू -- यों आने को में आऊँगा, मगर पंचायत में मुँह न खोलूँगा ।
ख़ाला -- क्यों बेटा?
अलगू -- अब इसका क्या जवाब दूँ? अपनी खुशी! जुम्मन मेरे पुराने
मित्र हैं। उनसे बिगाड़ नहीं कर सकता ।
खाला -- बेटा, क्या बिगाड़ के भय से ईमान की बात न कहोगे?
हमारे सोये हुए धर्म-ज्ञान की सारी सम्पत्ति लुट जाये तो उसे ख़बर नहीं
होती, परन्तु ललकार सुनकर वह सचेत हो जाता है। फिर उसे कोई जीत
नहीं सकता। अलगू उस सवाल का कोई जवाब न दे सके । पर उनके
हृदय में यह शब्द गूँज रहे थे :
''क्या बिगाड़ के भय से ईमान की बात न कहोगे?
चार
संध्या समय एक पेड़ के नीचे पंचायत बैठी । जब सूर्य अस्त हो गया और
चिड़ियों की कलरब-युक्त पंचायत पेड़ों पर बैठी, तब वहाँ भी पंचायत
आरभ्भ हुई | फ़र्श की एक-एक अंगुल ज़मीन भर गयी । निमन्त्रित महाशयों
में से केवल वही लोग पधारे थे, जिन्हें जुम्मन से अपनी कुछ क़सर निकालनी
थी।
पंच लोग बैठ गये तो बूढ़ी खाला ने उनसे विनती की -- पंचों, आज
तीन साल हुए, मैंने अपनी सारी जायदाद अपने भानजे के नाम लिख दी
थी | इसे आप लोग जानते ही होंगे। जुम्मन ने मुझे रोटी-कपड़ा देना कबूल
. किया था। साल भर मेंने इसके साथ रो-धोकर काटा, पर अब रात-दिन
User Reviews
No Reviews | Add Yours...