सागर के रहस्यों की कहानी | SAGAR KE RAHASYON KI KAHANI
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
347
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
एच० एस० बिश्नोई - H. S. Bishnoi
No Information available about एच० एस० बिश्नोई - H. S. Bishnoi
पुस्तक समूह - Pustak Samuh
No Information available about पुस्तक समूह - Pustak Samuh
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्ड महासागर की उत्पत्ति
के
अब्लो'में नहीं सोचते । इसके विपरीत वे ऐसे सिद्धाता वी ओर रुस बदल रह
ह जिनमें विभिन घटनाएँ एक क्रमवद्ध रुप में घटी और एक वहुत रूम्बे का मं
फछी हुई बताई जाती हू । इसके लिए मात्र अत्द विकास है। जब यह नात
हो चुका ह कि अतरातारकीय आकाट रिक्त नही हू वितु उसमे घूलि और
गैस के प्रकीण कणा से रचे हुए विरल्ति बादल पाय जाते हैं । इन नीहारिशाप्ा
मे लगभग वैसे ही पदाथ और उतने ही अनुपात में पाए जाते हैं जितन कि सूय
मौर अग तारा मे । इसका यह अथ है कि ये ९९ प्रतिशत हाइड्रोजन एवं
हीलियम की, आर रूगमग १ प्रतिशत भारी तत्त्वा पी बनी है। इसबे विपरीत
ग्रह अधिकानत भारी पदार्थों के बन है। पृथ्वी मुख्यत जआक्सीजन, सिलिक्न
तथा लाहे वी बनी हू )
डस नई जानकारी के आधार पर डाक्टर काल वान वाइसकर नामक जमन
भौतिक विज्ञानी तथा डाक्टर जेराल्ड कुपियर नामक डच-अमरीवन सगीलच
ने कैट-लाप्छास क सिद्धात के विरोध मे रखी गइ पुरानी आपत्तिया का हटाया।
जहाने सुझाव रपा कि सूय मूलत अन्तरातारकीय पदाथ के ठडे बादल अथवा
कसी भीहारिका से सघनित हुआ । इस बादल का प्रधान भाग एक बहुत अधिक
बड़ा सूय बन गया जो उस समय तक भी ठडा एवं प्रकाशहीन था, तथा उसका
ल्गमग ६ प्रतिशत भाग बाहर रह गया जो साड़े तीन अरब मील की दूरी तक फैला
था (यह प्टूडा तक वी दूरी है) । सम्पुण तत्र विस प्रकार घूमने लगा, इस बारे
में अमी भी काइ जानकारी नही , किन्तु एक वार शुरू हो जाने के बाद लमातार
सकूचन होते जान से यह घृणन लगातार जारी रहा होगा ।
कुछ मिठाकर बादल चज्रिका को आकृति का हो गया और चक्कर खाती
हुई त*तरी की तरह घूमते लूगा । इसवे' विभिन्न भागां में गुरत्व में अन्तर
हाने के कारण, पूरा वादल कई व्यप्टिगत काप्छो अथवा वत्ताकार सघनना मं
दूट गया । इन टूटे हुए भागा के कणा मे विश्लुब्य गति थी। ये काप्ठ वेद्ग
जर्थात् सूय की आर सब स॑ छांटे थे और बाहरी सीमात की ओर उनका आकार
बढ़ता गया था। इनके द्वारा घूणन करते हुए वल्या का एक क्रम बन गया जिसमे
प्रत्येक वलय पाच कांप्ठा का बना था और य कोप्ठ भाला के दाना के समान
अनवः सकेद्वीय नकल्सा पर बन थे (चित्र ३) । चक्कर खात्त हुए नक्लल्सा
के केद्ग पर स्थित सूब अमी भी ठडा था।
प्रत्येक नक्लस अथवा वलूय का बाहरी भाग सूय के केद्ग से लगभग उतनी
ही दूर था जितनी दूर आज ग्रह है। प्रत्येक वलय विभिन चाल के साथ धम
रहा था किंतु वल्या क॑ वीच जथवा व्यष्टिगत कोप्ठो के बीच काई बड़ा सघटटन
User Reviews
No Reviews | Add Yours...